आमजनता को नि:शुल्क सुविधा और राशि उपलब्ध करवाने को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के रेवड़ी करार देने के बाद शुरू हुई बहस के बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने रविवार को कहा कि अब समय आ गया है कि देश के सभी जरूरतमंद लोगों को सामाजिक सुरक्षा दी जानी चाहिए। मुख्यमंत्री ने अपने राज्य में शुरू की गई योजनाओं और कार्यक्रमों पर प्रकाश डालते हुए परिवारों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए केंद्र द्वारा साप्ताहिक धन देने की वकालत की। उन्होंने कहा कि भारत सरकार को अहंकारी होने के बजाय राज्यों से सीख लेनी चाहिए और उनकी अच्छी योजनाओं को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करना चाहिए।
कमजोर परिवार ही लेते हैं सुरक्षा का लाभ
गहलोत ने कहा कि परिवार को सामाजिक सुरक्षा मिलनी चाहिए। यह के वल उन्हीं परिवारों द्वारा लिया जाएगा, जिनकी हालत खराब है। गहलोत ने जोर देकर कहा कि क्यों न परिवारों को अनिवार्य रूप से अन्य देशों की तरह साप्ताहिक धन प्राप्त हो। इससे उन्हें परिवारों को चलाने में मदद मिलेगी। इसे सामाजिक सुरक्षा कहते हैं।
केंद्र को नहीं होना चाहिए अहंकारी
सीएम ने कहा कि राज्य सरकार ने आठ रुपए प्रति प्लेट पर भोजन उपलब्ध कराने के लिए इंदिरा रसोई योजना चलाई। चिरंजीवी योजना के तहत 10 लाख का स्वास्थ्य बीमा और सभी सरकारी अस्पतालों में मुफ्त इलाज की सुविधा दी हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री कांफ्रेंस में कहते हैं कि राज्यों को एक-दसरे से सीखना चाहिए, लेकिन भारत सरकार को भी राज्यों के कामों से सीखना चाहिए और अहंकारी होने के बजाय उन्हें लागू करना चाहिए।
पुनर्विचार के लिए तीन जजों की बनाई बेंच
प्रधानमंत्री ने पिछले दिनों अपने संबोधनों में रेवड़ी कल्चर को लेकर चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा था कि यह आधारभूत संरचना के विकास में अवरोध है। इसे ‘शॉर्टकट’ बताकर इसके खतरे से आगाह किया और ‘रेवड़ी कल्चर’ पर बहस को आगे बढ़ाया। इस बीच उच्चतम न्यायालय में इस सम्बंध में जो जनहित याचिकाएं दायर की गई, उनकी सुनवाई करते हुए तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एन. वी. रमना ने तीन जजों की पीठ को यह मामला सौंपते हुए कहा था कि, ‘इस तरह से फ्रीबीज बांटना सरकार के लिए ऐसी परिस्थिति खड़ी कर सकता है कि जहां सरकारी खजाना खाली होने की वजह से जनता को आम सुविधाओं से वंचित होना पड़े। हमें यह भी याद रखना चाहिए कि यह पैसा करदाताओं का है। इससे पहले भी दो जजों की पीठ ने सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु में इस मुद्दे पर बहस सुनी थी, लेकिन वहां न्यायालय ने फ्रीबीज को गलत नहीं माना था। उस पर पुनर्विचार के लिए तीन जजों की बेंच बनाई गई है।
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