धार। आज का युग विज्ञान का युग है। 21वीं सदी में वैज्ञानिकों ने इतना विकास कर लिया है कि चांद पर पहुंचने के लिए प्रयत्नशील है। लेकिन, आज भी हमारे समाज को अंधविश्वास की जंजीरों ने जकड़ा हुआ है। ऐसा ही मामला मध्यप्रदेश के धार जिले में सामने आया है।
यहां पाड़लिया गांव के लोग कई सालों से जिन पत्थरों को कुल देवता मानकर पूजा अर्चना कर रहे थे, वो करोड़ों वर्ष पहले के डायनासोर के अंडे निकले। दरअसल, नर्मदा घाटी का यह इलाका करोड़ों साल पहले डायनासोर युग से जुड़ा रहा है। बताया जा रहा है कि यहां पर करीब 6.5 करोड़ साल पहले डायनासोर का क्षेत्र हुआ करता था। हालांकि, अब प्रशासन ने मामला सामने आने के बाद अंडों की जांच कर रहा है।
स्थानीय डायनासोर विशेषज्ञ विशाल वर्मा ने बताया कि कुछ दिन पहले तीन वैज्ञानिकों का वर्कशॉप आयोजित किया गया था। इस वर्कशॉप में वैज्ञानिक डॉ. महेश ठक्कर, डॉ. विवेक वी कपूर और डॉ. शिल्पा आए हुए थे। ये सभी मांडू स्थित डायनासोर फॉसिल्स पार्क के विकास कार्य का जायजा लेने के लिए भी आए थे।
इसी दौरान वैज्ञानिकों ने देखा कि गांव के लोग करीब 18 सेंटीमीटर व्यास के गोल पत्थरों की पूजा करते हैं। एक जानकार ग्रामीण वेस्ता पटेल ने बताया कि गोल पत्थरों में उनके काकर भैरव वास करते हैं। यह देव पूरे गांव पर कोई संकट नहीं आने देते हैं। वैज्ञानिकों ने कई दिनों तक जब इस मामले की जांच की तो उन्हें संदेह हुआ।
उन्होंने इस बात की चर्चा आगे पहुंचाई। जिसके बाद लखनऊ वैज्ञानिकों की टीम वहां आई। वैज्ञानिकों की टीम ने जब जांच की तो पता चला कि गोल पत्थरनुमा आकृति तो डायनासोर के अंडे हैं। गांव के लोग इन अंडों को देवता मानकर पूजा कर रहे थे। जानकारों का मानना है कि नर्मदा घाटी के क्षेत्र में डायनासोर के फॉसिल्स जगह जगह दबे-बिखरे पड़े हैं। मांडू में इसी उद्देश्य से पार्क बनाया जा रहा है ताकि फॉसिल्स को संरक्षित किया जा सके।