Rajasthan Politics : मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस अध्यक्ष तो बन गए हैं लेकिन उनके सामने आ रहे चैलेंजेज खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहे हैं। इसमें सबसे बड़ा संकट राजस्थान की राजनीति का है। कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के चलते यह मुद्दा 17 अक्टूबर तक के लिए टाल दिया गया था या यूं कहें कि यथास्थिति पर रखा गया था। लेकिन अब चुनाव संपन्न हो गए हैं तथा खड़गे के रूप में नया अध्यक्ष भी मिल गया है। इसलिए संभावना जताई जा रही है कि अब जल्द राजस्थान के राजनीतिक संकट का भी समाधान होगा। खड़गे ही तय करेंगे कि राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी को इस्तीफा देने वाले 92 विधायकों पर क्या फैसला लेना है व कौन राजस्थान का अगला सीएम होगा।
राजस्थान संकट..खड़गे का पहला असाइनमेंट
खड़गे के लिए यह मुद्दा उनके लिए एक तरह के असाइनमेंट की तरह होगा जिस पर वे खरे-उतरने की पूरी कोशिश करेंगे। मल्लिकार्जुन खड़गे को राजस्थान का यह मुद्दा बेहद सोच समझकर व सारे राजनीतिक समीकरणों को जानकर ही करना होगा क्योंकि उनके एक फैसले से प्रदेश में सरकार गिर भी सकती है व बन भी सकती है। गौरतलब है कि जब राजस्थान प्रभारी अजय माकन के साथ वे पर्यवेक्षक बनकर आए थे तब स्थिति नियंत्रण से बाहर चली गई थी काफी समझाने के बाद भी इस्तीफा देने वाले 92 विधायकों ने बैठक में आने से मना कर दिया व पर्यवेक्षकों से एक-एक कर मिलने के लिए भी मना कर दिया। तब तो दोनों पर्यवेक्षक खाली हाथ लेकर दिल्ली लौट गए थे, लेकिन अब स्थिति अलग है कि अब खड़गे पर्यवेक्षक नहीं बल्कि कांग्रेस के अध्यक्ष हैं। राजस्थान के संकट से निपटने के लिए अब विधायकों को समझाने से लेकर सीएम के फेस तक के सारी गतिविधियां खड़गे के रिपोर्ट कार्ड में दर्ज होंगी।
अशोक गहलोत से विचार विमर्श के बाद होगा फैसला !
राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत के अध्यक्ष पद की उम्मीदवारी के चलते यह संकट पैदा हुआ इसलिए अशोक गहलोत इस हालात से भलीभांति परिचित हैं। मल्लिकार्जुन खड़गे अशोक गहलोत के काफी करीबी माने जाते हैं। अशोक गहलोत खड़गे के अध्यक्ष पद के नामांकन के लिए प्रस्तावक भी बने थे तथा खड़गे की जीत के लिए कई बार खुले तर पर ऐलान भी कर चुके थे। ऐसे में अब इसकी भी संभावना है कि खड़गे अशोक गहलोत से राजस्थान के इस मुद्दे पर विचार-विमर्श करें तथा एकलाइन का प्रस्ताव पास कराने की एक बार फिर कोशिश करें।
गहलोत का चुनाव से इनकार तो सीएम पर फैसला क्यों
इस मामले खड़गे की ओर से ये भी फैसला लिया जा सकता है कि अशोक गहलोत ही सीएम बने रहे तथा इस प्रस्ताव को भी निरस्त कर दिया जाए क्योंकि इस एकलाइन के प्रस्ताव की जरूरत तब पड़ी थी जब अशोक गहलोत को अध्यक्ष पद के लिए नामित किया गया था तथा कांग्रेस के उदयपुर संकल्प एक व्यक्ति एक पद के तहत उनका सीएम पद से हटना था। विधायकों के इस्तीफे देने के बाद अशोक गहलोत ने अध्यक्ष चुनाव लडने से ही इनकार कर दिया था तथा अब मल्लिकार्जुन खड़गे अध्यक्ष बन ही चुके हैं तब इस प्रस्ताव का कोई चित्य ही नहीं रह जाता। लेकिन कांग्रेस के संविधान के अनुसार एकरलाइन के प्रस्ताव न पास कराने र आलाकमान के आदेशों की अनुशासनहीनता पूर्वक अवहेलना करने पर कार्रवाई के तहत फैसले भी लेने है इसी फैसले पर अब पूरे प्रदेश व देश की नजरें रहने वाली हैं।