मानव जीवन के लिए तीन चीजें सबसे अधिक आवश्यक है- रोटी, कपड़ा और मकान। इनमें से अगर बात करें कपड़े की तो, मनुष्य के जन्म से ही कपड़े का इतिहास माना जाता है। वस्त्र किसी भी व्यक्ति के लिए पहली जरूरत होती है। भारत में भोगोलिक, सामाजिक और सांस्कृतिक आधार पर अलग-अलग प्रकार के वस्त्र पहने जाते हैं। महिला व पुरूष दोनों भिन्न-भिन्न कपड़े पहनते हैं। हमारे देश में धर्म, जलवायु और क्षेत्रों के अनुसार अलग-अलग वस्त्र धारण किये जाते हैं।
शहरी क्षेत्रों में पश्चिमी कपड़ों का चलन अधिक होता है, तो ग्रामीण क्षेत्रों में पारंपरिक वस्त्रों का चलन रहता है। हालांकि जैसे-जैसे समय बदलता गया, कपड़ों में भी बदलाव होता गया। इतना ही नहीं दुनिया भर में विशेष समुदाय को अलग रंग के तौर पर देखा जाता है। जैसै- हिंदू धर्म के लिए केसरिया रंग विशेष महत्व रखता है, तो मुस्लिम समुदाय में हरे रंग को अहमियतता दी जाती है। बात करें कपड़ों के इतिहास की तो, मानव जन्म के साथ ही कपड़ों का जन्म हुआ माना जाता है।
कितना पुराना वस्त्रों का इतिहास
भारत में टेक्सटाइल का व्यवसाय मुख्य रूप से किया जाता है। इसके इतिहास की बात करें तो, मानव सभ्यता की शुरूआत से ही कपड़ों और वस्त्रों का विकास होता आ रहा है। इसका इतिहास लगभग मानव सभ्यता के जितना ही पुराना है। जैसे-जैसे समय गुजरा तो वस्त्रों का विकास और समृद्ध होता चला गया। वस्त्र बनाने के लिए रेशम की बुनाई लगभग चार सौ ईस्वी पूर्व में शुरू हुई, जबकि कपास की कताई तीन हजार ईसा पूर्व की है।
विशेषज्ञों द्वारा किए गए अध्ययनों से पता चला है कि इनका विकास, उपयोग और उपलब्धता मानव के जन्म के साथ ही शुरू हो गई थी। यह अलग-अलग सभ्यताओं को दर्शाते हैं। किसी भी समाज के भीतर अलग-अलग परिधानों का प्रयोग किया जाता है। हालांकि कुछ वैज्ञानिकों के बीच यह मतभेद रहा कि मनुष्य ने कपड़े पहनना कब शुरू किया। अध्ययनों से पता चला है कि कपड़ों का इतिहास लगभग एक लाख सत्तर हजार वर्ष पहले से जुड़ा है।
ऐसे हुआ कपड़ों का आविष्कार
इसके बारे में किट्लर, केसर और स्टोनकिंग जैसे बड़े वैज्ञानिकों का कहना है कि आधुनिक होमो सेपियन्स ने जब अफ्रीका की गर्म जलवायु से होकर उत्तर की ओर प्रवास किया तब कपड़ों का आविष्कार हुआ। शोधकर्ताओं की मानें तो ऐसा एक लाख से पचास हजार वर्ष पहले हुआ था। जबकि कुछ शोधकर्ताओं का माना कि कपड़ों की उत्पत्ति तीस हजार से एक लाख चौदह वर्ष पहले हुई थी। कपड़े सिलने के लिए जिन सुईं का प्रयोग किया जाता है उनका इतिहास कम से कम पचास वर्ष पहले का है। कुछ मानव विज्ञानियों का मानना है कि कपड़ों से पहले मानव शरीर ढकने के लिए जानवरों की खाल और वनस्पतियों का उपयोग करते थे।
धर्मों के अनुरूप कपड़ों का चयन
कुछ धर्मों में रंग कोड के आधार पर भी कपड़ों का प्रचलन है। जैसे- हिंदू देवियों को लाल रंग की पोषाख पहनाई जाती है, तो पारसी और ईसाई लोग शादी के समय सफेद परिधान पहनते हैं। भारत में कपड़ों पर खास प्रकार की कढ़ाई भी की जाती है। हाथों से मोती लगाना, बोर्डर बनाना जैसे कार्य विशेषतौर पर किए जाते हैं। इसलिए कपड़ों में रंगों का भी मुख्य महत्व रहता है।
(Also Read- मालिक के प्रति भी वफादार नहीं तोता, पूरे विश्व में पाई जाती है 399 जातियां)