शिमला का नाम आते ही लोगों के दिमाग में सबसे पहले एक ही नाम आता है, और वो है सेब। जिसके बारे में डॉक्टर्स भी कहते हैं “एन एप्पल ए डे कीप्स अवे फ्रोम ए डॉक्टर”। यानी हर दिन अगर एक सेब का सेवन किया जाए तो आपको कभी चिकित्सक के पास जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इससे एक बात तो साफ है कि स्वास्थ्य के लिए सेब का सेवन बहुत फायदेमंद होता है। सेब एक फल है जिसका रंग लाल होता है, लेकिन हिमाचल प्रदेश में हरे रंग का सेब भी मिलता है।
हिमाचल का सेब पूरे देश में प्रसिद्ध है। यह विटामिन सी का मुख्य स्रोत है। इसके अलावा यह वजन को नियंत्रित रखने में भी कारगर साबित होता है। ये स्वाद में खट्टे-मीठे होते हैं। सेब के बारे में कहा जाता है कि इसकी खोज अन्य देशों में हुई। भारत में इसकी सबसे अधिक पैदावार उत्तर भारत में की जाती है। भारत के अलावा अमेरिका, चीन जैसे देशों में भी इसका उत्पादन किया जाता है।
इन देशों में धार्मिक महत्व
सेब को वैज्ञानिक भाषा में मेलस डोमेस्टिका कहा जाता है। पहले यह फल मुख्य रूप से मध्य एशिया में पाया जाता था, बाद में यूरोप में भी सेब उगाया जाने लगा। इसके हजारों वर्षों बाद एशिया और यूरोप में भी इसका उत्पादन किया जाने लगा। एशिया और यूरोप से उत्तरी अमेरिका में इसका निर्यात किया जाता है। दुनिया में कई ऐसे देश और महाद्वीप भी हैं जहां इसका धार्मिक महत्व है। इन देशों में ग्रीक, वेनेज़ूएला और यूरोप शामिल है।
इंग्लैंड के लोगों का मानना है कि यह फल देवताओं द्वारा दिया गया उपहार है। भारत में सबसे अधिक सेब का उत्पादन जम्मू-कश्मीर में किया जाता है। सेब उत्पादन में भारत का विश्व में सातवां स्थान है। जम्मू कश्मीर में सेब उत्पादन से सालाना 1500 करोड़ की आमदनी होती है। विश्व के तीन प्रतिशत फलों का उत्पादन भारत में होता है। भारत में सर्वाधिक सेब उत्तर भारत में उगाया जाता है।
किसने की खोज
अब जहन में सबसे पहला सवाल यह आता है कि आखिर सेब की खोज कैसे हुई। दरअसल इसके बारे में पता लगाने का श्रेय सिकंदर महान को दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि जब सिकंदर मध्य एशिया आया, तब उसने सेब के बारे में जाना। यही कारण है कि यूरोप में सेब की सबसे अधिक प्रजातियां पाई जाती है। जबकि इंग्लैंड में इसकी खोज अलग तरीके से हुई। दरअसल इंग्लेंड के लोगों ने इसे जर्मन लोगों की कब्र में पाया था। लेकिन कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि यह फल सबसे पहले मध्य एशियाई देश कज़ाकिस्तान की पहाड़ियों में पैदा हुआ। इसके बाद यह बाकी देशों में पहुंचा। इसी सेब से सैकड़ों प्रताजियां उत्पन्न हुई।
पहली नस्ल का सेब
इस फल की पहली नस्ल का नाम ‘मालस सिएवर्सी’ है, जो कि आज भी कज़ाकिस्तान के जंगलों में पाई जाती है। इसकी खास बात यह है कि इन सेबों को किसी इंसान द्वारा न उगाया जाकर जंगली भालुओं द्वारा उगाया जाता है। जब ये सेब को कुतरकर इसके बीज इधर-उधर फैला देते हैं, तो अन्य स्थानों पर भी पैदावार होने लगती है। इसलिए यहां जंगली भालू को ही सेब का किसान कहा जाता है।
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