सरदारशहर के उपचुनाव के नतीजों ने भाजपा के लिए एक बड़ी चिंता का विषय दे दिया है। वसुंधरा राजे को साइडलाइन करना उन्हें कितना भारी पड़ रहा है। वो इस चुनाव की हार ने बता दिया है। यहां लगातार तीसरी बार कांग्रेस ने विधानसभा सीट पर कब्जा जमाया है। इस जीत से कांग्रेस को एक तरह से विधानसभा चुनाव 2023 के लिए एक घंटी बजती सुनाई दे रही है। क्योंकि खुद सीएम अशोक गहलोत ने सरदारशहर के चुनाव प्रचार में कहा था कि आप लोग इस तरह से वोट करो कि जैसे यह एक क्षेत्र का नहीं बल्कि पूरे राज्य का चुनाव है। ताकि इसकी तस्वीर में विधानसभा चुनाव 2023 की झलक दिखाई दे। सरदारशहर के चुनाव नतीजों ने शायद यह झलक दिखा दी है।
विधानसभा चुनाव 2023 में क्या होगा !
यह खबर जितनी कांग्रेस को राहत दे रही है उतनी ही भाजपा को चिंता में डाल रही है। क्योंकि उपचुनाव में भाजपा की हार का असर विधानसभा चुनाव में पड़ सकता है। ये भी सच है कि सिर्फ एक सीट के नतीजे भी हार और जीत को कई बार तय करते हैं। सरदारशहर के मामले में यह तथ्य दिया जा सकता है कि वहां सिंपैथी कार्ड चल गया या भंवर लाल शर्मा से लोगों का जुड़ाव अभी भी है इसलिए कांग्रेस वहीं जीती। लेकिन हमें एक तथ्य यह भी नहीं भूलना चाहिए कि भंवरलाल शर्मा सरदारशहर के लिए एक ऐसी शख्सियत थे जिनके लिए पार्टी कभी मायने नहीं रखती थी वे जब कांग्रेस से थे तब जीते, जब जनता दल में थे तब उन्होंने जीत हासिल की और इस बार सीट पर भंवरलाल शर्मा नहीं बल्कि उनके बेटे खड़े थे। फिर भी भाजपा इस मौके को ढंग से नहीं भुना पाई। भाजपा के स्टार प्रचारकों की लिस्ट तो काफी लंबी थी। लेकिन उन स्टार प्रचारकों में कितने प्रचारक वहां गए और अशोक पिंचा के लिए समर्थन मांगा।
सरदारशहर उपचुनाव से गायब रहीं वसुंधरा
सिर्फ यही नहीं भाजपा का मुख्य चेहरा और सबसे ताकतवर नेता वसुंधरा राजे सरदारशहर उपचुनाव में नहीं दिखाई दीं। वसुंधरा राजे की ताकत का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि जब वे अपने विरोधियों के गढ़ में अपने समर्थन में जनसैलाब ला सकती हैं तो एक विधानसभा सीट पर उपचुनाव के प्रचार में वे क्या-क्या कर सकती थीं। इस बात को वसुंधरा के विरोधी भी मानते हैं कि राजस्थान भाजपा की असली ताकत वसुंधरा राजे में है और उन्हें इस तरह से साइडलाइन में रखना पार्टी के लिए प्रदेश में खतरा बन रहा है। यह तो सिर्फ एक सीट का उपचुनाव था। तो यह हाल भाजपा का हुआ, आगे पूरा विधानसभा चुनाव उसे देखना है और इस तरह के हालात रहे तो भाजपा जो अगले चुनाव में जीत का दंभ भरती नजर आ रही है वो ध्वस्त हो सकता है।
राज्यसभा चुनाव से भी नहीं लिया सबक
इसी साल 10 जून को हुए राज्यसभा चुनाव में भी 4 सीटों में भाजपा के खाते में सिर्फ 1 सीट आई थी जो घनश्याम तिवाड़ी ने जीती थी। यही नहीं भाजपा की अंदरूनी खींचतान के चलते ही दिग्गज सुभाषचंद्रा ने राज्यसभा की सीट गंवा दी थी। तो वहीं भाजपा की धौलपुर से विधायक रहीं शोभारानी कुशवाहा ने तो क्रॉस वोटिंग कर कांग्रेस को जीत दिला दी थी। हालाकिं उनका ये वोट खारिज हो गया था। लेकिन इससे शोभारानी की भाजपा से नाराजगी साफ दिखाई देने लग गई थी। यहां आपको यह तथ्य बताना इसलिए जरूरी है कि शोभारानी कुशावाहा, वसुंधरा राजे की बेहद करीबी मानी जाती हैं। इसके बावजूद शोभारानी ने कांग्रेस को वोट दिया था। इसका शोभारानी ने कारण भी दिया था कि बड़े नेताओं ने उनके साथ वादाखिलाफी की है।उन्होंने कहा था कि किसी भी नेता का वजूद उशके कार्यकर्ताओं से होता है। शोभारानी के यह शब्द भले ही भाजपा को चुभे हों लेकिन यह भी सच है कि भाजपा को इस अंदरूनी उठा-पटक से बाहर निकल कर जमीनी स्तर पर काम करना होगा और पार्टी की मजबूती जिस चेहरे से है यानी वसुंधरा राजे को अपना नेता मानना ही होगा।