सरदारशहर उपचुनाव की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है वैसे-वैसे चुनावी मौसम का पारा बढ़ रहा है। चारों तरफ बस यही शोर और एक ही सवाल है कि सरदारशहर का सरदार आखिर कौन बनेगा। क्या कांग्रेस के अनिल शर्मा अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाएंगे या भाजपा के अशोक पिंचा अपनी दो हार का बदला इस जीत से लेंगे या फिर दोनों पार्टियों को पछाड़ती हुए RLP के लालचंद मूंड के सिर जीत का ताज सजेगा। इसे समझने के लिए हमें सरदारशहर के राजनीतिक और जातीय समीकरण को समझना पड़ेगा। क्योंकि ये समीकरण ही प्रत्याशियों की हार-जीत का ताना-बुना बुनते हैं।
भंवरलाल शर्मा एंटी जाट फिर भी सबसे ज्यादा बार बने विधायक
साल 2013 से अब तक राजस्थान में 8 उपचुनाव हो चुके हैं। इनमें से 6 पर कांग्रेस ने अपना कब्जा जमाया है और 2 में भाजपा ने जीत हासिल की है। इनमें से भी 4 विधानसभा सीट हैं और दो लोकसभा सीट हैं। सरदारशहर का होने वाला यह उपचुनाव 9वां होगा। इसके लिए दोनों ही पार्टियों ने एड़ी-चोटी का जोर लगाया हुआ है। सरदारशहर में भंवरलाल शर्मा साल 2018 में अशोक पिंचा को पटखनी देकर विधायक बने थे।
इसमें सबसे ज्यादा दिलचस्प बात यह है कि देश की आजादी के बाद सरदारशहर में साल 1952 से लेकर 2018 तक 15 चुनाव हो चुके हैं, जिसमें 9 बार कांग्रेस ने जीत का ताज पहना है। सिर्फ दो बार भाजपा को यहां से विधायक मिला है और वो साल 1980 और 2008 का था। इनमें से सबसे ज्यादा 6 बार दिवंगत भंवरलाल शर्मा यहां से विधायक रहे हैं। भंवरलाल शर्मा ने 4 बार तो कांग्रेस के टिकट से, एक बार लोकदल और एक बार जनता दल से टिकट पर विधायक की कुर्सी पर पहुंचे। जिससे साफ है कि सरदारशहर में भंवरलाल शर्मा का डंका बजता था और इस पर भी सबसे रोचक तथ्य यह है कि सरदारशहर एक जाट बाहुल्य क्षेत्र हैं और भंवरलाल शर्मा की राजनीति एंटी जाट की थी। फिर भी सरदारशहर ने भंवरलाल शर्मा को सबसे ज्यादा बार अपना सरदार बनाया।
ये मुख्य जातिगत समीकरण तय करते हैं हार-जीत
1-जाट-65000
2-दलित-55000
3-ब्राह्मण-45000
4-मुसलमान-23000
5-राजपूत-20000
6-जैन-4000
7-माली- 10000
8-कुम्हार- 8000
9-स्वामी-8500
10-अग्रवाल-4000
11-सोनी-8000
12-सुथार-7000
13-सिद्ध- 7000
14-अन्य- 19500
गांवों में तय होती है हार-जीत
यहां आपको यह भी बता दें कि सरदारशहर विधानसभा क्षेत्र में उम्मीदवारों का भविष्य गांवों में तय होता है। क्योंकि क्षेत्र के कुल वोटर्स 2 लाख 89 हजार 500 हैं। इनमें से ग्रामीण क्षेत्रों के वोटर्स की संख्या 2 लाख 19 हजार 500 हैं तो शहरों में सिर्फ 67 हजार मतदाता हैं। अब सरदारशहर के आगामी उपचुनाव को देखें तो यहां RLP ने त्रिकोणीय मुकाबले का दावा किया है।
क्योंकि जाट बाहुल्य क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए RLP ने चूरू जिला दुग्ध उत्पादक संघ के अध्यक्ष और आदर्श जाट महासभा के जिला संयोजक लालचंद मूंड को उतारा है। RLP जातिगत समीकरण बिठाने की कोशिश में हैं जिससे इस बार लालचंद मूंड को विधायक चुना जाए। लेकिन सरदारशहर राजस्थान का एक ऐसा विधानसभा क्षेत्र रहा है कि यहां पर जातिगत समीकरणों से नहीं बल्कि स्थानीय समीकरणों से सरकार बनी हैं। दिवंगत भंवरलाल शर्मा इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। क्योंकि ब्राह्मण और एंटी जाट पॉलिटिक्स के बावजूद वे सरदारशहर के सबसे ज्यादा बार सरदार चुने गए थे। आलम यह था कि उनके नाम के आगे तो पार्टी के नाम ने भी महत्व नहीं रखा।
राजपूत वोट में लगेगी सेंध
सरदारशहर में जितने अहम जाट और ब्राह्मण वोट हैं उतने ही राजपूत वोट भी मायने रखते हैं। सरदारशहर में राजपूत वोटर्स 20 हजार हैं। अब अगर कांग्रेस की बात करें तो यहां भंवरलाल शर्मा के बेटे अनिल शर्मा को ब्राह्मण वोट के अलावा राजपूत वोट भी मिले, इसके लिए कांग्रेस ने राजपूतों को साधने के लिए RTDC चेयरमैन धर्मेंद्र राठौड़ को सरदारशहर में नियुक्त किया है। धर्मेंद्र राठौड़ यहां राज्य सरकार की योजनाओं को जनता के बीच ले जाने का जिम्मा संभाल रहे हैं, इसके अलावा सरकार की ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने समेत कई अहम फैसलों से भी वहां की जनता को अवगत करा रहे हैं।
धर्मेंद्र राठौड़ लगातार वहां पार्टी के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं से मिलकर जमीनी स्तर पर पार्टी की मजबूती को धार दे रहे हैं। तो भाजपा भी इसमें पीछे नहीं है। राजपूत वोटों में सेंध लगाने के लिए चूरू विधायक और उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ डेरा डाले हुए हैं। बता दें कि धर्मेंद्र राठौड़ और राजेंद्र राठौड़ दोनों ही राजपूत समाज से आते हैं और दोनों का ही अपने समाज में खासा दबदबा है। भाजपा प्रत्याशी अशोक पिंचा जैन समाज से आते हैं। वोटर्स की बात करें तो यहां जैन समुदाय के 4 हजार मतदाता हैं। अशोक पिंचा साल 2008 में विधायक बने थे उस वक्त उसके विपरीत कांग्रेस से भंवरलाल शर्मा खड़े हुए थे लेकिन तब अशोक पिंचा को 73 हजार 902 मत मिले थे और उन्होंने भंवरलाल शर्मा पर 9 हजार 774 वोटों से बढ़त बनाकर जीत दर्ज की थी।
ये हैं प्रत्याशियों का बैकग्राउंड
भाजपा- अशोक पिंचा
62 वर्षीय अशोक पिंचा जैन समाज से आते हैं और उनका सरदारशहर में एक बड़ा मेडिकल स्टोर है। सरदारशहर के पिंचों की बास में उनका निवास है। अशोक पिंचा जनसंघ के जमाने से पार्टी और विचारधारा से जुड़े। साल 2008 के विधानसभा चुनाव में अशोक पिंचा सरदारशहर सीट से खड़े हुए थे। उनके सामने कांग्रेस के दिवंगत भंवरलाल शर्मा मैदान में उतरे थे। उस वक्त अशोक पिंचा ने 9 हजार 774 वोटों से यह चुनाव जीत लिया था। उस वक्त भंवरलाल शर्मा को 64 हजार 128 वोट तो अशोक पिंचा को 73 हजार 902 मत मिले थे। लेकिन साल 2013 और 18 में उन्हें भंवरलाल शर्मा ने हार का मुंह दिखाया।
कांग्रेस – अनिल शर्मा
अनिल शर्मा भी राजनीति के पक्के खिलाड़ी माने जाते हैं। ब्राह्मण वोट अनिल शर्मा के पक्ष के माना जा रहा है। ब्राह्मण महासभा के प्रदेश उपाध्यक्ष भी हैं। वे साल 1995 में सरदारशहर नगरपालिका के चेयरमैन बने थे। साल 2000 से लेकर 2018 तक वे सरदारशहर कांग्रेस ब्लॉक के अध्यक्ष भी चुके हैं। इसके बाद साल 2022 तक उन्होंने राजस्थान कांग्रेस के शहरी निकाय प्रकोष्ठ के उपाध्यक्ष का पद भी संभाला। इसके बाद वे राजस्थान राज्य आर्थिक पिछड़ा वर्ग बोर्ड के चेयरमैन बने। उन्हें सरकार की ओर से राज्यमंत्री की दर्जा भी मिला हुआ है। इसके अलावा वे जयपुर में भी सक्रिय हैं। वे अनिल शर्मा बीते सितंबर को ही प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य चुने गए थे।
RLP- लालचंद मुंड
RLP ने भाजपा और कांग्रेस के वोट काटने के लिए इस बार लालचंद मूंड के नाम पर दांव चला है। लालचंद मूंड चूरू जिला दुग्ध उत्पादक संघ के अध्यक्ष हैं इससे उनकी ग्रामीण इलाकों में अच्छी पकड़ मानी जाती है। जाट बाहुल्य इलाका होने के चलते उनकी समाज में भी गहरी पैठ है। बता दें कि साल 2008 में लालचंद मूंड बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे। लेकिन उस वक्त वे बुरी तरह हारे थे। भाजपा के अशोक पिंचा ने तब जीत दर्ज की थी और कांग्रेस के भंवरलाल शर्मा दूसरे नंबर आए थे।