राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा 3-4 दिसंबर को राजस्थान में प्रवेश करेगी। यह यात्रा लगभग 18-20 दिनों तक राजस्थान में रहेगी। लेकिन भाजपा इसे टक्कर देने और कांग्रेस सरकार के 4 साल पूरे होने पर प्रदेश में इसका विरोध करने के लिए जनआक्रोश आंदोलन की शुरूआत कर रही है। यह जनआक्रोश आंदोलन भारत जोड़ो यात्रा के लगभग साथ ही निकाली जाएगी। भाजपा प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह ने तो यह भी कह दिया था कि हम राहुल को गांधी को दिखा देंगे कि यह जनआक्रोश यात्रा उनकी सुबह-शाम की मॉर्निंग वॉक की तरह नहीं है।
भारत जोड़ो को टक्कर देकर चमकेगी राजनीति!
दरअसल राजस्थान में भारत जोड़ो यात्रा को राजस्थान में एक तरह से कांग्रेस के शक्ति प्रदर्शन के तौर पर देखा जा रहा है। राहुल गांधी खुद इसके अगुआ हैं। साथ ही भारत जोडो यात्रा में प्रदेश कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के साथ ही पार्टी का हर कार्यकर्ता भी शामिल होगा। इसमें सीएम अशोक गहलोत, पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा, प्रताप सिंह खाचरियावास, बीडी कल्ला, धर्मेंद्र राठौड़, शकुंतला रावत समेत सभी मंत्री और विधायक शामिल होंगे। जाहिर है कि इस यात्रा से ये राजनीति के दिग्गज कितने बड़े संदेश और शक्ति के साथ इस यात्रा को राजस्थान में निकालेंगे। अब चुनाव के समय कांग्रेस इतनी मजबूती से जनता को संदेश देगी तो भाजपा कैसे पीछे रह सकती है। भारत जोड़ो के प्रभाव को अपने स्तर पर कम करने के लिए उसे कुछ तो करना होगा तो यह जनाक्रोश रैली ही सही।
कांग्रेस के खिलाफ कोई माहौल नहीं तैयार नहीं कर पाई भाजपा
यह सर्वविदित है कि भाजपा कांग्रेस के खिलाफ अब तक कोई खास लहर नहीं बना पाई। हालांकि पार्टी के प्रदेश के शीर्ष नेता ये तो अक्सर बोलते सुने जाते हैं कि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार कोई काम नहीं कर रही है, या उसकी अंदरूनी खींचतान ही उनकी सरकार को एक दिन गिरा देगी। लेकिन समस्या यह है कि भाजपा अपनी ही कही हुई बातों न तो अमल में ला पा रही है न ही उनका इस्तेमाल कर पा रही है। अगले साल 2023 में लगभग इसी समय राजस्थान में चुनावी माहौल होगा। इस हिसाब से देखें ते समय बहुत ही कम है।
लेकिन प्रदेश भाजपा अभी भी कांग्रेस के खिलाफ कोई माहौल नहीं पाई है। थोड़ा सा पीछे जाकर देखेंगे तो पाएंगे कि लंपी वायरस को लेकर भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया के नेतृत्व में विधानसभा का घेराव किया था, तब सतीश पूनिया के बैरिकेडिंग पर चढ़ने और फिर पुलिस के धक्के मारकर नीचे गिराने की खबर ने पूरे देश में सुर्खियां पाईं थीं। यह खबर जरूर बड़े-बड़े मीडिया चैनल की बड़ी खबरों में आई थी। लेकिन इससे पहले और इसके बाद भाजपा की तरफ राजस्थान में माहौल शुष्क पड़ा हुआ है। हां ये बात अलग है कि राजस्थान में भारत जोड़ो यात्रा के आने औऱ इसके विरोध में भाजपा की निकाली जा रही जन आक्रोश रैली भले ही इस माहौल में नमी लाने का काम करे।
भारत जोड़ो यात्रा के 5 शहरों के समीकरणों से भिड़ेगी जन आक्रोश रैली
अगर हम भाजपा की ही बात करें तो उसने कहा है कि राजस्थान की पूरी 200 विधानसभा सीट पर एक-एक रथ के जरिए गहलोत सरकार के खिलाफ प्रचार-प्रसार किया जाएगा और भारत जोड़ो यात्रा को भी चुनौती दी जाएगी। अब इसमें भाजपा कितना सफल होती है उसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिन 7 जिलों में भी जहां-जहां से ये यात्रा निकलेगी वहां पर 18 विधानसभा क्षेत्र हैं। इनमें से भी 12 सीटों पर कांग्रेस काबिज है और 6 पर भाजपा है।
झालावाड़ के राजनीतिक समीकरण देखें तो पाएंगे कि कोटा संभाग का यह क्षेत्र वसुंधरा राजे का गृहनगर है। इस समय यहां पर वसुंधरा राजे के बेटे दुष्यंत सिंह सांसद हैं। यहां पर 1984 के बाद से कांग्रेस कभी नहीं आई। पहली बार 1952 के चुनाव में यहां कांग्रेस के नेमीचंद कासलीवाल ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद 1962 तक लगातार कांग्रेस ने ही यहां पर जीत दर्ज की थी। 1977 और 80 में जनता पार्टी के नेतृत्व में सरकार बनने पर झालावाड़ की सीट भी इस दल के पास चली गई थी। इसके बाद साल 1984 के बाद तो भाजपा का एकछत्र राज ही यहां रह गया। इसके साथ ही झालावाड़ में एससी-एसटी वोटर्स लगभग 30 से 35 प्रतिशत हैं। लेकिन यहां गुर्जरों का खासा प्रभाव माना जाता है। यहां हार-जीत का फैसला भी ये गुर्जर ही करते हैं। यहां भले ही प्रभाव भाजपा का है लेकिन जातिगत समीकरणों से कांग्रेस के लिए राह आसान हो सकती है।
कांग्रेस यात्रा VS भाजपा रैली
वहीं इसके बाद कोटा की बात करें तो यहां से कांग्रेस के शांति धारीवाल विधायक हैं और ओम बिरला सांसद हैं, लेकिन मजे की बात यह है कि ये दोनों ही अपने क्षेत्रों में खासे सक्रिय रहते हैं। इसलिए यहां दोनों पार्टियों की यात्रा को थोड़ा लाभ मिल सकता है। कोटा जिले में 6 विधानसभा सीट हैं। यहां कोटा से उत्तर विधानसभा सीट से शांति धारिवाल विधायक हैं और दक्षिण से भाजपा के प्रह्लाद गुंजाल हैं। फिर भी देखें तो जितना नाम कोटा को लेकर धारिवाल का आता है, गुंजाल उतने नहीं दिखाई देते। कोटा के विकास की भी बात होती है तो धारीवाल पहले दिखाई देते हैं।
गुर्जर लिखेंगे यात्राओं की सक्सेस स्टोरी !
अलवर जिला गुर्जर, ब्राह्मण और यादव बहुल इलाका है। यहां की थानागाजी और बानसूर गुर्जरों के शहर कहे जाते हैं। अलवर में गुर्जर कांग्रेस को तो ब्राह्मण भाजपा पर भरोसा जताती है। अलवर की सीट पर भाजपा को बानसूर से उद्योग मंत्री और कांग्रेस विधायक शकुंतला रावत का राज है। शकुंतला रावत एक गुर्जर चेहरा हैं। जाहिर है गुर्जर बहुल इलाके और जहां कांग्रेस का दबदवा हो वहां इन दोनों यात्राओं में से किसे सफलता मिलेगी। यही स्थिति दौसा और सवाई माधोपुर की भी है। यहां पर गुर्जर वोटर ही प्रत्याशी की हार-जीत तय करते हैं। दौसा में तो बांदीकुई, महवा, सिकराय, लालसोट गुर्जरों की संख्या ज्यादा है। यहां कांग्रेस के मुरारी लाल मीणा पार्टी का एक बड़ा चेहरा माने जाते हैं और इनका भी यहां वर्चस्व बोलता है और टोंक में तो खुद सचिन पायलट बैठे हुए हैं। अब तो बस देखना यह है कि यहां पर भारत जोड़ो यात्रा और जन आक्रोश रैली में सबसे ज्यादा नंबर कौन लेकर जाता है और ये नंबर तो वोट के रूप में चुनाव में ही दिख पाएंगे।