छठ पूजा 2022 : दीपावली के पांच दिवसीय त्यौहार के बाद अब आस्था के महापर्व छठ पूजा का आगमन हो गया है। आज से यानी 28 अक्टूबर से यह त्यौहार नहाए-खाय की रीति के साथ शुरू हो गया है। छठ का यह त्यौहार खासतौर पर पूर्वी यूपी और बिहार, झारखंड में दीपावली की तरह मनाया जाता है। आपको बता दें कि यह पर्व साल में दो बार मनाया जाता है पहला चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी और दूसरा कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को। दीपावली के 5 दिन से त्यौहार की तरह यह पर्व भी 4 दिनों तक मनाया जाता है। सबसे खास और अहम बात यह है कि यह 36 घंटे का कठिन निर्जला व्रत का पर्व होता है। कई लोग आज से इसकी शुरुआत कर चुके हैं। तो चलिए हम भी आपको बताते हैं कि करोड़ों लोगों की आस्था के इस महापर्व को कैसे किस तरह और क्यों मनाया जाता है।
क्यों मनाते हैं छठ पर्व
वैदिक काल से ही छठ पूजा के महापर्व को लोगों द्वारा मनाया जा रहा है। सिर्फ हिंदू ही नहीं अन्य धर्म के लोग भी इस पर्व को बड़ी ही धूमधाम से मनाते हैं। यह छठ पूजा सूर्य, ऊष्मा, प्रकृति, पृथ्वी और सूर्य की की बहन छठ मैया को समर्पित है। इस पर्व को सिर्फ स्त्रियां ही नहीं पुरुष भी समान रूप से मनाते हैं। छठ मैया के इस महापर्व को लेकर कई कथाएं पुराणों में कही गई हैं। उनमें से सबसे प्रचलित एक कथा जिसके बारे में हम आपको बताते हैं। दरअसल महाभारत काल में जब पांडव शकुनि और दुर्योधन के साथ चौसर में अपना सारा राजपाट हार गए थे। तब द्रौपदी ने छठ माता का व्रत रखा था। ऐसा कहा जाता है कि द्रौपदी ने मन वचन कर्म से उस पूजा का निर्वहन किया। जिसका फल यह हुआ कि पांडवों को राजपाट वापस उन्हें वापस मिल गया।
पुराणों में यह भी कहा गया है कि सूर्य देवता और छठी माता परस्पर भाई बहन है। छठी माता की पूजा सबसे पहले सूर्य भगवान ने ही की थी। लेकिन आपको हम एक और दिलचस्प बात यह बता रहे हैं कि इस महापर्व का सिर्फ धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक महत्व भी है। कई वैज्ञानिक अनुसंधान में यह शोध किया गया कि जिस तिथि यानी षष्ठी को यह पर्व मनाया जाता है वह एक खास खगोलीय अवसर होता है। इस दिन सूर्य की अल्ट्रावायलेट रेज़ यानी पराबैंगनी किरणें धरती की सतह पर सबसे अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं।
यह है वैज्ञानिक महत्व
इन हानिकारक किरणों से मानव की रक्षा करने के लिए यह पूजा की जाती है। क्योंकि छठी मैया में ही भगवान सूर्य के पराबैंगनी किरणों से मनुष्य के रक्षा करने का सामर्थ्य है। इसके साथ ही पृथ्वी में बसने वाले अन्य जीवों को भी इससे लाभ मिलता है। जिस तरह की खगोलीय घटना छठ पर्व पर होती है। इसमें सूर्य की पराबैंगनी किरणें चंद्रमा के कुछ सतह से परावर्तित होकर पृथ्वी पर फिर से अधिक से अधिक मात्रा में पहुंच जाती हैं। सूर्यास्त और सूर्योदय के समय यह और भी ज्यादा सघन हो जाती हैं। ज्योतिष विज्ञानियों के अनुसार यह घटना कार्तिक और चैत्र मास की अमावस्या के 6 दिन बाद होती है इसलिए इस पर्व का नाम छठ पर्व रखा गया है।
इस तरह मनाते हैं छठ का पर्व
आस्था के महा प्रतीक छठ पर्व का आरंभ भाई दूज के तीसरे दिन से आरंभ होता है। आज नहाय-खाय से यह पर्व शुरू हो गया है। आज के दिन से स्त्रियां और पुरुष इस पर्व के व्रत को शुरू करते हैं। इस दिन सेंधा नमक और घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दू की सब्जी प्रसाद के रूप में बनाई जाती है। इसके एक दिन पहले की रात को खीर बनाई जाती है। जो लोग इस व्रत का निर्वहन करते हैं। वे लोग रात में इन पकवानों को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। इसके बाद तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ देते हैं। यह आर्घ्य दूध से अर्पित कर दिया जाता है। जबकि पर्व के अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। लेकिन व्रत रखने वाले लोग यह ध्यान दें कि इस व्रत में परहेज का बहुत ही ध्यान रखा जाता है। इसमें लहसुन प्याज वर्जित होता है। जिन-जिन घरों में यह पूजा होती है। वहां खास तौर पर पवित्रता बरती जाती है।
किस तरह होता है नहाय-खाय का व्रत
लेकिन यह नहाए खाए का व्रत किस तरह किया जाता है। उसके बारे में भी हम आपको बताते हैं। आज छठ पर्व का पहला दिन है। जिसे नहाय खाय के नाम से जानते हैं। आज बड़ी संख्या में जिन लोगों ने व्रत रखा है, वह भी और जिन्होंने नहीं रखा है वह भी, नदी के घाटों, पोखर, तालाब या अन्य जलाशयों में स्नान करते हैं। इसके बाद वे अरवा चावल का भात, कद्दू की सब्जी और चने की दाल को पकाकर खाते हैं।
सबसे दिलचस्प बात यह है कि यह सारी चीजें कुछ लोग तो घर से बना कर लाते हैं। लेकिन कुछ ही नदी की रेत पर ही बनाते हैं और पकाते हैं। इसे ही हम नहाय खाय का नाम देते हैं। आज के दिन से ही व्रती लोगों ने अपना कठिन व्रत शुरु कर दिया है। यह निर्जला व्रत होता है। आज के दिन शाम को गन्ने के रस से तैयार गुड़ से खीर बनती है। इसे जो लोग व्रत रहते हैं वह ग्रहण करते हैं। साथ ही घी लगी हुई रोटी भी प्रसाद के रूप में अर्पित की जाती है। व्रत के बाद दूसरे लोगों को भी यह प्रसाद के रूप में दिया जाता है। इस तरह इस पर्व का दूसरा दिन पूरा होता है।
अंतिम होता है सबसे दिलचस्प नजारा
छठ पूजा का सबसे दिलचस्प नजारा हमें इसके अंतिम दिन देखने को मिलता है। जब उदय होते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के लिए नदियों में या जलाशयों में बड़ी संख्या में स्त्री, पुरुष, बच्चे, बूढ़े सूर्य को अर्घ्य देते हैं। सूर्य उगने के साथ ही उसकी पूजा-अर्चना शुरू हो जाती है। जिसके बाद भक्तों में प्रसाद का वितरण होता है। जिसके बाद यह व्रत पूरा हो जाता है और व्रती लोग सामान्य भोजन ग्रहण करने लग जाते हैं। यहां पर हम आपको कुछ लोकगीतों के बारे में भी बता रहे हैं जो छठ मैया की पूजा के वक्त स्त्रियां या पुरुष गाते हैं।
1- ठेकुआ लाओ लड्डू चढ़ाओ,
छठी मैया के गुण गाओ
जय छठी मैया
छठ पूजा की बधाई
2- महापर्व छठ है आया
खुशियों की सौगात लाया
उल्लास कण-कण में समाया
छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं
3- जय हो सूर्य देव की
जय जय हो छठी मैया की
छठ महापर्व और नहाए खाए की हार्दिक शुभकामनाएं
4- घाट किनारे खड़े होकर करेंगे हम सूर्य देव को नमन
आओ मिलकर मनाए छठ का त्यौहार
जय छठी मैया
नहाए खाए की शुभकामनाएं
5- छठ पर्व आपके जीवन में खुशहाली लाए
आपके घर में रोशनी भर दे
छठ पूजा व नहाए खाए की हार्दिक शुभकामनाएं
6- कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाय
बहंगी लचकत जाय, होई ना बलम जी कहरिया,
बहंगी घाटे पहुंचाय।
कांच ही बांस के बहंगिया,
बहंगी लचकत जाय
बहंगी लचकत जाय।।
ओहरे जे बारी छठि मैया, बहंगी उनका के जाय
बहंगी उनका के जाय, कांच ही बांस के बहंगिया,
बहंगी लचकत जाय, बहंगी लचकत जाय।।
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