राजस्थान की पूर्व सीएम व भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे को प्रदेश भाजपा किनारे कर रही है। आजकल राजस्थान की सियासत में यह चर्चा आम हो गई है। हो भी क्यों ना, जब प्रदेश भाजपा के मुख्य कार्यों में वसुंधरा नजर नहीं आ रही तो हर किसी के मन में यह सवाल कौंध रहा है। दूसरी तरफ ये भी चर्चा छिड़ी हुई है कि क्या वसुंधरा राजे को साइड कर भाजपा को चुनाव में वह सफलता मिल सकती है जिसकी वह उम्मीद लगा रही है।
सवाल बहुत है लेकिन इसका जवाब नहीं है। दरअसल वसुंधरा राजे एक आध कार्यक्रमों को छोड़कर प्रदेश भाजपा के किसी भी कार्यक्रम में शामिल नहीं होती। अभी हाल में प्रदेश भाजपा के शीर्ष नेता विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी को ज्ञापन देने के लिए गए थे। सभी नेताओं ने फोटो भी खिंचाई थी लेकिन उसमें कहीं वसुंधरा राजे नजर नहीं आ रही थी। अब इसकी वजह सामने आई तो एक बार तो इस कारण पर भी यकीन नहीं हुआ। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया और सांसद ओम माथुर ने कहा कि अचानक विधानसभा स्पीकर को ज्ञापन देने का कार्यक्रम बना तो उन्हें बुला नहीं पाए।
लेकिन यह कारण किसी के गले नहीं उतर रहा है। वसुंधरा और पूनिया शेखावत में गुटबाजी है यह तो हर कोई जानता है। यह गुटबाजी चुनावों में कितनी भारी पड़ेगी इसका भी अंदाजा भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को है। तभी बीते शुक्रवार को दिल्ली में हुई कोर कमेटी को बैठक में आलाकमान ने सख्त संदेश देकर प्रदेश भाजपा के नेताओं को आगाह कर दिए है। साथ ही ये नसीहत भी दी है कि वे पर्सनल नहीं बल्कि पार्टी के एजेंडे पर चलें । सिर्फ कल ही नहीं जब जब नरेंद्र मोदी, जेपी नड्डा और अमित शाह ने राजस्थान का दौरा किया है। तब भी उन्होंने इस मुद्दे को उठाकर प्रदेश भाजपा के शीर्ष नेताओं को एकजुटता का पाठ पढ़ाया है। लेकिन इसके बावजूद यह कलह थमने का नाम नहीं ले रही है।
आने वाले 1 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बांसवाड़ा दौरे पर भी ये मुद्दा एक बार फिर उठाए जाने के पूरे आसार हैं। क्योंकि अब अगले ही साल चुनाव है और भाजपा ये बिल्कुल नहीं चाहेगी की अंदरूनी कलह की जड़ साल 2018 की हार दोबारा दोहराई जाए। बीते 30 सितंबर को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कुछ देर के लिए सिरोही पहुंचे थे। यहां आकर उन्होंने अपने अंदाज से सिरोही का ही नहीं पूरे देश में चर्चा हो गई थी। रात 10 बजे के बाद माइक में बोलने के लिए मना करना तीन बार जनता को दंडवत प्रणाम करने और जल्द ही फिर से आने का वादा कर उन्होंने जनता से जुड़े रहने की कोशिश की। अब आगामी बांसवाड़ा दौरे में वे जनता को कई योजनाओं की सौगात को देंगे ही साथ ही एक साथ दो राज्यों राजस्थान व गुजरात की आदिवासी जनता को साधने की कोशिश करेंगे।
इन सीटों पर वसुंधरा का प्रभुत्व
प्रदेश के 8 जिलों में 25 आदिवासी सीटें हैं इन जिलों में बांसवड़ा भी आता है अभी इन सीटों में 13 कांग्रेस के पास है और 8 भाजपा के पास है। भाजपा इस अंतर को कम करने की जुगत में है। क्यों कि इन 8 जिलों में आदिवासी जनसंख्या का आंकड़ा कुल जनसंख्या का 70.42 प्रतिशत है। इसलिए यह वर्ग दोनों ही पार्टियों कांग्रेस और भाजपा के लिए बेहद जरूरी है। लेकिन वसुंधरा राजे को किनारे कर शायद ही यह लक्ष्य हासिल किया जा सके। क्योंकि इन सीटों वाले क्षेत्रों का वसुंधरा राजे का अच्छा खासा प्रभाव माना जाता है। इसलिए अगर प्रदेश भाजपा वसुंधरा राजे को किनारे कर इन सीटों पर जीत हासिल करने के सपने देख रही है तो शायद ही यह सपना पूरा हो सके।