जालोर। होली पर्व प्रमुख त्योहारों में से एक है। पूरे देश में यह त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। होली पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, हर साल की तरह इस बार भी कल यानी 24 मार्च को फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि को होलिका दहन की जाएगी। इसके अगले दिन यानी चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को रंगों वाली होली पर्व (धुलंडी) मनाया जाएगा।
देशभर में होली का पर्व अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। कहीं प्रहलाद की सवारी निकाली जाती है तो कहीं जुलूस निकाला जाता है और कहीं मातम मनाया जाता है। वहीं राजस्थान के जालोर में होली के पर्व पर लोक देवता की बारात निकल जाती है।
होली दहन से पहले निकाली जाती है बारात
दरअसल, जालोर में एक अनोखी बारात निकालने की परंपरा पिछले कई वर्षों से आज भी कायम है। यहां इलोजी महाराज (आनंद भैरूजी) की यह बारात निकाली जाती है। इसमें सजधज कर शहरवासी बाराती के रूप में शामिल होते हैं। लेकिन, जब तक बारात होली चौक पहुंचती है उसके पहले ही होलिका दहन कर लिया जाता है। ऐसे में वह शादी अधूरी मानी जाती है।
होली पर बारात की प्रहलाद वाली कहानी
इस बारात में इलोजी महाराज (आनंद भैरू) के रूप में एक युवक को दुल्हा बनाया जाता है। दूल्हे को सजाकर घोड़ी पर बैठाया जाता है। शहरवासी साफा बांधकर बारात में शामिल होते हैं। ढोल व डीजे पर नाचते हुए यह बारात शहर के मुख्य इलाकों से होकर गुजरती है। दरअसल, इसके पीछे एक मान्यता जुड़ी है कि इलोजी लोक देवता हिरण्यकश्यप की बहन की से प्रेम करते थे। एक तरफ तो शादी की तैयारी चल रही थी और दूसरी तरफ हिरण्यकश्यप अपने बेटे प्रहलाद को मारने की साजिश रच रहा था।
आखिरकार उसने अपनी बहन होलिका की मदद ली और भाई के कहने पर होली का अपने भतीजे प्रहलाद को जलाने के लिए उसे लेकर आग में बैठ गई जिससे उसकी मौत हो गई। ऐसे में इलोजी महाराज को रास्ते में होली का के मौत की खबर मिलती है। इसके बाद वह जाकर अपनी पत्नी का जला हुआ शरीर देखते हैं और फिर उसकी राख को अपने शरीर पर लगाकर पूरे जीवन शादी नहीं करते। इसी मान्यता को लेकर आज भी जालोर में यह बारात निकाली जाती है। जालोर में कई वर्षों से बारात की अनोखी परंपरा चलती आ रही है।