One Country… One Election: एक देश, एक चुनाव को लेकर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि देश में एक साथ चुनाव कराने से पहले भारत के संविधान और कानूनों में कुल 18 संशोधन कराने पड़ेंगे। समिति ने सुझाव दिया है कि संविधान संशोधन के अलावा देश में कई और वैधानिक बदलाव भी करने पड़ेंगे।
समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंपने से पहले कुल 62 राजनीतिक पार्टियों से राय मांगी थी, जिनमें से 47 पार्टियों ने अपनी प्रतिक्रिया दी। 18 दलों के साथ व्यक्तिगत बातचीत भी की गई। एक चुनाव योजना का समर्थन वाले दलों का कहना है कि इससे संसाधन बचेंगे और सामाजिक सद्भाव और आर्थिक विकास की भी सुरक्षा होगी।
32 राजनीतिक पार्टियां एक साथ चुनाव कराने के पक्ष
रिपोर्ट के अनुसार, 32 राजनीतिक पार्टियां एक साथ चुनाव कराने के पक्ष में हैं, वहीं 15 पार्टियां इसका विरोध कर रही हैं। जिन पार्टियों ने एक साथ चुनाव का समर्थन किया, उनमें से केवल दो ही राष्ट्रीय पार्टियां हैं- भाजपा और इन पार्टियां ने किया एक साथ चुनाव का समर्थन भाजपा के अलावा जिन पार्टियों ने एक फिलहाल यह है देश में चुनाव की व्यवस्था क्षेत्रीय पार्टियां, चुनाव खर्च और चुनावी रणनीति के मामले में राष्ट्रीय पार्टियों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाएंगी रिपोर्ट में बताया गया है कि जो पार्टियां इसका विरोध कर रही हैं, उनका तर्क है कि यह संविधान के आधारभूत ढांचे का उल्लंघन कर सकता है।
साथ ही यह अलोकतांत्रिक, गैर-संघीय कदम होगा, जिससे क्षेत्रीय पार्टियों को नुकसान होगा और राष्ट्रीय पार्टियों का प्रभुत्व बढ़ेगा। आप, कांग्रेस और माकपा ने एक देश, एक चुनाव के विचार को यह कहकर खारिज कर दिया कि यह नेशनल पीपुल्स पार्टी। विरोध करने वाली पार्टियों में चार राष्ट्रीय पार्टियां कांग्रेस, बसपा, आम आदमी पार्टी देश, एक चुनाव का समर्थन किया है, उनमें एआईएडीएमके, ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन, अपना दल (सोनेलाल), असम गण परिषद, बीजू जनता दल, लोजपा (आर), मिजो नेशनल फ्रंट, नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी, शिवसेना, जनता दल (यूनाइटेड), सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा, शिरोमणि अकाली दल, यूनाइटेड पीपल्स पार्टी लिबरल का नाम शामिल है।
भाकपा (एमएल), सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया, राजद, भारतीय समाज पार्टी, गोरखा नेशनल लिबरल फ्रंट, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा, राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (अजित पवार) ने भी एक देश एक चुनाव का विरोध किया है। बसपा ने इसका सीधे तौर पर विरोध नहीं किया है, लेकिन इसे लेकर कुछ चिंताएं साझा की हैं और कहा है कि इसे लागू करना भी काफी चुनौतीपूर्ण होगा।
इन पार्टियों ने नहीं दी प्रतिक्रिया
भारत राष्ट्र समिति, आईयूएमएल, जम्मू एंड कश्मीर नेशनल कान्फ्रेंस, जेडीएस, झामुमो, केरल कांग्रेस (एम), एनसीपी, राजद, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी, सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट, तेलुगु देशम पार्टी, वाईएसआर कांग्रेस ने कोई जवाब नहीं दिया। रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2019 में सभी राजनीतिक दलों की एक बैठक हुई थी, जिसमें देश में प्रशासन और चुनाव में बड़े बदलावों पर चर्चा हुई थी। उस समय 19 राजनीतिक पार्टियों में से 16 ने बदलावों का समर्थन किया था और सिर्फ तीन ने ही इस विचार का विरोध किया था।
- भारत निर्वाचन आयोग पर लोकसभा और विधानसभा चुनावों की जिम्मेदारी है।
- नगर निकायों और पंचायत चुनावों की जिम्मेदारी राज्य निर्वाचन आयोगों पर है।
समिति ने यह की हैं अहम सिफारिशें - लोकसभा और राज्य विधानसभाओं को एक साथ कराया जाना चाहिए।
- लोकसभा चुनाव के 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव कराएं।
- त्रिशंकु स्थिति या अविश्वास प्रस्ताव या ऐसी किसी स्थिति में नई लोकसभा के गठन के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं।
- भारत निर्वाचन आयोग राज्य चुनाव अधिकारियों के परामर्श से एकल मतदाता सूची और मतदाता पहचान पत्र तैयार करे। इसके लिए मतदाता सूची से संबंधित अनुच्छेद 325 को संशोधित किया जा सकता है।
राज्य चुनाव आयुक्त भी एकराय नहीं
कई हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीशों में से नौ ने एक साथ चुनाव कराए जाने का समर्थन किया, जबकि तीन ने चिंता या आपत्ति जाहिर की। दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश अजीत प्रकाश शाह ने एक साथ चुनाव कराये जाने के सवाल का विरोध किया। उन्होंने कहा, एक साथ चुनाव राजनीतिक जवाबदेही में खलल पैदा करते हैं।
कलकत्ता हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश गिरीश चंद्र गुप्ता ने कहा कि यह विचार लोकतंत्र के सिद्धांतों के अनुकूल नहीं है, जबकि मद्रास हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीब बनर्जी ने कहा कि यह भारत के संघीय ढांचे को कमजोर करेगा और क्षेत्रीय मुद्दों के लिए हानिकारक साबित होगा। वहीं, एक राष्ट्र एक चुनाव को लेकर परामर्श किए गए वर्तमान और पूर्व राज्य चुनाव आयुक्तों में से सात ने समर्थन किया, जबकि तमिलनाडु के चुनाव आयुक्त वी पलानीकुमार ने चिंता व्यक्त की।