मुंबई। ‘आओगे जब तुम ओ साजना, अंगना फूल खिलेंगे…’ जैसे क्लास गानों से रोमांटिक बोलों में शास्त्रीय संगीत का जादूबिखेरने वाले उस्ताद राशिद खान (Rashid Khan death) मंगलवार को लंबी बीमारी के बाद दुनिया से रुखसत हो गए। वे पिछले काफी समय से प्रोस्टेट कैंसर से जूझ रहे थे। गत 21 नवंबर को स्ट्रोक आने के बाद से वे कोलकाता के एक अस्पताल में भर्ती थे। उन्हें मंगलवार को वेंटिलेटर सपोर्ट पर लिया गया था। अस्पताल सूत्रों के मुताबिक उनके पूरे शरीर में संक्रमण फैल गया था। उस्ताद राशिद खान को शुद्ध हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत (नियमबद्ध) को सुगम संगीत (नियमों से परे) से जोड़ने के लिए याद किया जाएगा। उन्हें साल 2022 में देश के तीसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
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14 साल की उम्र से अकादमी में अपने सुरों को तराशा
उस्ताद राशिद खान रामपुर-सहवासन घराने से संबंध रखते थे। वे उस्ताद गुलाम मुस्तफा खान के भतीजे थे। उनके घराने का संबंध ग्वालियर घराने की गायन शैली से माना जाता है। संगीत की प्रारंभिक शिक्षा अपने नाना निसार हुसैन खान से लेने के बाद 14 वर्ष की उम्र में वे कोलकाता की आईटीसी संगीत रिसर्च अकादमी में शामिल हो गए। 14 साल तक अकादमी में उन्होंने अपने फन को तराशा। उत्तर प्रदेश के बदायूं में 1 जुलाई 1968 को जन्मे उस्ताद राशिद खान ने संगीत की पहली मंचीय प्रस्तुति 11 साल की उम्र में दी थी।
इन पुरस्कारों से नवाजे गए
पद्मश्री (2006), संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (2006), वैश्विक भारतीय संगीत अकादमी पुरस्कार (2010), महा संगीत सम्मान पुरस्कार (2012), बंग भूषण (2012), मिर्ची संगीत पुरस्कार (2013) और 2022 में पद्म भूषण।
अच्छे सुर पर लगता है ऊपर कोई खींच रहा है…
खान ने एक इंटरव्यू में कहा था, ‘जैसे ही कोई अगर अच्छा सुर लगता है तो लगता है कोई (परवरदिगार) ऊपर खींच रहा है, अब उससे आगे मत जा। कभी-कभी वाकई ऐसा महसूस होता है। उस वक्त रो पड़ते हैं।’ उनकी बात सही साबित हुई। इस सुर सम्राट ने ऐसे सधे और सुंदर सुर लगाए कि उन्हें ऊपर वाले ने वक्त से पहले ही अपनी गोद में उठा लिया।
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फिल्मी गीतों से बने युवाओं की पसंद
उस्ताद राशिद खान की ‘जब वी मेट’ में गाई बंदिश ‘आओगे जब तुम ओ साजना…’ इतनी लोकप्रिय हुई कि हर जबां पर चढ़ गई। उनके चर्चित गानों में राग किरवानी में, ‘तोरे बिना मोहे चैन नहीं…’, राग अहीर भैरव में ‘अलबेला साजन…’ और ‘याद पिया की आए…’ ने शास्त्रीय संगीत प्रेमियों को अपनी आवाज का दीवाना बना दिया। ‘राज 3’, ‘कादंबरी’, ‘मंटो’ और ‘मितिन माशी’ जैसी फिल्मों को उन्होंने अपनी मौसिकी से ऊंचाइयां प्रदान कीं।