Bhajanlal Government : जयपुर। राजस्थान में सरकार बदलने के साथ ही पिछली कांग्रेस सरकार की योजनाओं के नाम बदलना तय माना जा रहा है। गौरतलब है कि पिछले दो दशकों से सरकार बदलते ही आमजन से जुड़ी योजनाओं के नाम बदलने की परिपाटी चलती आ रही हैं। ऐस में यह तय मन जा रहा है कि प्रदेश में भाजपा राज में पूर्व कांग्रेस सरकार की योजनाओं के नाम बदलने की प्रबल संभावनाएं है।
वहीं, कांग्रेस सरकार की सबसे बड़ी चिरंजीवी योजना को भी आयुष्मान भारत योजना से जोड़ने को लेकर कवायद चल रहीं हैं। भजनलाल सरकार ने दो दिन पहले राजीव गांधी युवा मित्र और महात्मा गांधी सेवा प्रेरकों की भर्ती रद्द करने के बाद कांग्रेस नेताओं ने योजनाओं को नाम बदल कर जारी रखन की मांग की थी। गौरतलब है कि हाल ही में पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने भी योजनाओं के नाम बदलने को लेकर भजनलाल सरकार पर निशाना साधा था।
इन योजनाओं के बदल सकते हैं नाम
-इंदिरा गांधी स्मार्ट फोन योजना
-इंदिरा गांधी शहरी रोजगार गारंटी योजना
-महात्मा गांधी सेवा प्रेरक भर्ती योजना
-इंदिरा गांधी शहरी क्रेडिट कार्ड योजना
-इंदिरा गांधी मातृत्व पोषण योजना
-इंदिरा रसोई योजना शहरी व ग्रामीण
-इंदिरा महिला उद्यम शक्ति योजना
-राजीव गांधी कृषक साथी योजना
-राजीव गांधी स्कॉलरशिप फॉर एकेडमिक एक्सीलेंस योजना
-राजीव गांधी शहरी व ग्रामीण ओलंपिक खेल
-राजीव गांधी किसान बीज उपहार योजना
-इंदिरा गांधी गैस सिलेंडर सब्सिडी योजना
गहलोत सरकार ने बदले थे इन योजनाओं के नाम
गहलोत सरकार ने सत्ता में आते ही सभी सरकारी दस्तावेजों से पंडित दीनदयाल उपाध्याय की तस्वीर हटवा दी थी। दीनदयाल उपाध्याय वरिष्ठ नागरिक तीर्थ योजना का नाम मुख्यमंत्री वरिष्ठ नागरिक तीर्थ योजना कर दिया गया। गुरु गोलवलकर ग्रामीण जन भागीदारी योजना का नाम महात्मा गांधी ग्रामीण जनभागीदारी योजना कर दिया गया।
मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन योजना का नाम भी बदलकर राजीव गांधी जल स्वावलंबन योजना कर दिया गया। ग्रामीण गौरव पथ की जगह सरकार ने विकास पथ के नाम से योजना बनाई, जबकि भामाशाह को जन आधार योजना बना दिया। किसान राहत आयोग का नाम बदल कर कृषक कल्याण कोष कर दिया गया।
हर बार होते हैं करोड़ों रुपए खर्च
प्रदेश में सरकार बदलते ही योजनाओ के नाम बदलने पर करोड़ों रुपए खर्च होते हैं। योजना का नाम बदलने पर ग्राम प्रंचायत स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक होर्डिंग, पोस्टर, बैनर और सरकारी विज्ञापन में करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं। ऐसे में यदि राजनीतिक लोगों के नाम पर योजनाओं के नाम पर नहीं रखे जाए तो करोड़ों रुपए की बचत हो सकती है।
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