Rajasthan Election 2023: जयपुर। राजस्थान की चुनावी राजनीति में वर्ष 1952 के प्रथम आम चुनाव से लेकर आजतक पूर्व राजघरानों की दिलचस्पी बरकरार है। दल बदल बदल कर जीतहार का स्वाद चरखने वाले ये जनप्रतिनिधि अपने क्षेत्र तक सिमटे रहे हैं। लेकिन पूर्व अलवर रियासत के भंवर जितेन्द्र सिंह कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में भूमिका निभाने में अग्रणी रहे हैं। संयोगवश वर्तमान में तीसरी पारी में राजस्थान की शासन-सत्ता की बागडोर संभाल रहे मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की उपस्थिति में भंवर जितेन्द्र सिंह को कांग्रेस पार्टी में सम्मिलित होने का अवसर मिला। दिलचस्प तथ्य यह है कि इस राजनीतिक घटनाचक्र के पश्चात गहलोत पहली बार मुख्यमंत्री एवं भंवर जितेन्द्र सिंह पहली बार विधायक बने।
यह बात है पच्चीस बरस पहले की। याने वर्ष 1998। पूर्व ग्वालियर और अलवर राजघराने की दो हस्तियों के मिलन से इस कथा की शुरुआत होती है। अलवर के फूलबाग स्थित महल चौक में एक मंच सजा हुआ है। कांग्रेस के तत्कालीन महासचिव एवं ग्वालियर राजघराने के प्रमुख माधवराव सिंधिया विराजमान हैं। उनके बराबर तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक गहलोत बैठे हैं। मंच की पहली पंक्ति में पूर्व सांसद महेन्द्र कुमारी अपने पुत्र भंवर जितेन्द्र सिंह के साथ बैठी हुई हैं। सबसे अंत में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नवल किशोर शर्मा उपस्थित हैं।
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भंवर जितेन्द्र सिंह के कांग्रेस में शामिल होने की औपचारिक घोषणा के लिए सजे मंच पर उपस्थित पात्रों की भावी भूमिका पर नजर दौड़ा लेते हैं। माधवराव सिंधिया केन्द्र के मंत्री रहे। भंवर जितेन्द्र सिंह की मां महेन्द्र कुमारी पहले ही चुनावी राजनीति में सक्रिय रही हैं। उन्होंने वर्ष 1991 में अपना पहला लोकसभा चुनाव बतौर भाजपा प्रत्याशी जीता। अलवर संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस उम्मीदवार राम सिंह यादव को एक लाख मतों के अंतर से पराजित किया।
वर्ष 1998 के चुनाव में वे निर्दलीय प्रत्याशी थीं और कड़े संघर्ष में कांग्रेस के घासीराम यादव से मात्र 2561 वोटों से हार गई। बेटे के कांग्रेस में शामिल होने के पश्चात महेन्द्र कुमारी भी वर्ष 1999 में कांग्रेस प्रत्याशी रहीं। लेकिन इस बार भी किस्मत ने उनका साथ नही दिया।
भाजपा के डॉ. जसवंत यादव ने उन्हें 67 हजार 928 मतों के अंतर से हराया। मंच पर बैठे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नवलकिशोर शर्मा ने भी अलवर संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक गहलोत की अगुवाई में वर्ष 1998 के चुनाव में कांग्रेस को रिकाॅर्ड बहुमत मिलने पर वह मुख्यमंत्री बने। वर्ष 2023 के विधानसभा चुनाव में भरतपुर, उदयपुर, जयपुर, बीकानेर एवं कोटा के पूर्व राजघरानों के प्रतिनिधि अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। संसदीय लोकतंत्र में राजतंत्र की भागीदारी यथावत है।
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भाजपा के दो महंतों ने हराया
अब मुख्य किरदार भंवर जितेन्द्र सिंह की राजनीतिक भूमिका पर चर्चा। कांग्रेस में शामिल होने के पश्चात उन्हें अलवर से विधानसभा का पहला चुनाव लड़वाया गया। वर्ष 1998 में भाजपा की विधायक रही मीना अग्रवाल को 33 हजार मतों से तथा 2003 में इसी पार्टी की डॉ. पुष्पा गुप्ता का 27 हजार वोटों के अंतर से पराजित किया। दो बार विधायक निर्वाचित होने के पश्चात उन्हेंदिल्ली की राजनीति के सक्रिय किया गया।
अलवर संसदीय क्षेत्र से वर्ष 2009 में पहले चुनाव में भंवर जितेन्द्र सिंह ने भाजपा की डॉ. किरण यादव को एक लाख 56 हजार से अधिक वोटों से पराजित किया। वह डॉ. मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री बने। लेकिन वर्ष 2014 में वह भाजपा के महंत चांदनाथ से 2 लाख 45 हजार तथा 2019 में महंत बालकनाथ से तीन लाख 21 हजार से अधिक मतों के अंतर से पराजित हो गए। चुनाव हारने के भवजूद वह कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय भूमिका में हैं।
गुलाब बत्रा, वरिष्ठ पत्रकार