Supreme Court : नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को एक अहम फैसले के तहत सभी उच्च न्यायालयों को जनप्रतिनिधियों के खिलाफ लंबित आपराधिक मुकदमों की निगरानी के लिए एक विशेष पीठ गठित करने का निर्देश दिया, ताकि उनका शीघ्र निपटारा सुनिश्चित किया जा सके। इस आदेश का मकसद नेताओं के खिलाफ 5,000 से अधिक आपराधिक मामलों में त्वरित सुनवाई है। शीर्ष अदालत ने विशेष अदालतों से यह भी कहा कि वे दुर्लभ और बाध्यकारी कारणों को छोड़कर ऐसे मामलों की सुनवाई स्थगित न करें।
उच्च न्यायालयों, जिला न्यायाधीशों और सांसदों- विधायकों से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिए गठित विशेष अदालतों को कई निर्देश जारी करते हुए शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि सांसदों, विधायकों और विधान परिषद सदस्यों के खिलाफ दायर आपराधिक मामलों को प्राथमिकता दी जाए।
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायाधीश जे बी पारदीवाला और न्यायाधीश मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश संसद, विधान सभाओं और विधान परिषदों के सदस्यों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों के निपटारे की निगरानी के लिए सांसदों/विधायकों के लिए पुनः नामित अदालतें शीर्षक से स्वत: संज्ञान लेते हुए मामला दर्ज करेंगे।
स्वत: संज्ञान लेकर दर्ज मामलों की सुनवाई के लिए भी दिए निर्देश
पीठ ने कहा कि स्वत: संज्ञान लेकर दर्ज किए गए मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली एक विशेष पीठ द्वारा या उनके द्वारा विशेष पीठ में नियुक्त न्यायाधीशों द्वारा की जा सकती है, जो आवश्यक समझे जाने पर नियमित अंतराल पर मामलों को सूचीबद्ध कर सकते हैं। उच्च न्यायालय मामलों के शीघ्र एवं प्रभावी निस्तारण के लिए सभी दिशाओं में ऐसे आवश्यक आदेश जारी कर सकता है। विशेष पीठ अदालत की सहायता के लिए महाधिवक्ता या सरकारी वकील को बुलाने पर विचार कर सकती है।
त्वरित सुनवाई का मामला हाई कोर्ट पर छोड़ा
पीठ ने कहा कि कई स्थानीय कारकों ने उच्चतम न्यायालय के लिए देश की सभी सुनवाई अदालतों के वास्ते एक समान या मानक दिशा-निर्देश तैयार करना मुश्किल बना दिया है। उसने कहा कि इन कारकों ने त्वरित सुनवाई सुनिश्चित करने का मुद्दा उच्च न्यायालयों पर छोड़ दिया है, क्योंकि उन्हें सुनवाई अदालतों पर अधीक्षण की शक्ति हासिल है।
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