वॉशिंगटन। नासा अब एक अनोखा मिशन चलाने वाला है। नासा हमारे सौरमंडल में मौजूद धातु के एक उल्कापिंड पर अंतरिक्ष यान भेजने वाला है। वैज्ञानिकों के मुताबिक साइकी नाम का यह उल्कापिंड ग्रहों के शुरुआती निर्माण खंड का हिस्सा हो सकता है। मंगल और बृहस्पति ग्रह के बीच मौजूद एस्टेरॉयड बेल्ट में यह उल्कापिंड है, जो प्रमुख तौर पर धातु से बना है। गुरुवार को साइकी अंतरिक्ष यान के उड़ान भरने की उम्मीद है। इससे पहले नासा ने उल्कापिंड बेन्नू को लेकर मिशन चलाया था, जो धरती के करीब है और पृथ्वी के लिए खतरा बन सकता है।
साइकी उल्कापिंड सूर्य से 37.8 करोड़ से 49.7 करोड़ किमी के बीच है। लॉन्च के बादमिशन 2029 में उल्कापिंड के चारों और कक्षा में पहुंचेगा और इसकी वास्तविक बनावट और इसके तत्वों का अध्ययन करेगा। यह दो साल तक इसका अध्ययन करेगा। साइकी उल्कापिंड की खोज 17 मार्च 1852 को इटली के खगोलशास्त्री एनीबेल डी गैस्पारिस ने की थी।
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कितना बड़ा है उल्कापिंड
सेंट्रल फ्लोरिडा विश्वविद्यालय में एक्सोलिथ प्रयोगशाला के विज्ञान सलाहकार डॉ. जो लैंड् समैन ने कहा कि यह रहस्यमय और सबसे बड़ा और अजीब है। नासा के मुताबिक यह उल्कापिंड ढेलेदार और आलू की आकृति का है। इसकी सबसे ज्यादा चौड़ाई 280 किमी और लंबाई 232 किमी है। लैंड् समैन ने कहा कि रडार और दूरबीन अवलोकनों से पता चला है कि साइकी उल्कापिंड संभवतः लोहा, निकल और अन्य धातुओं से बना है, जो सौरमंडल में प्रचुर मात्रा में है।
किसका बना है उल्कापिंड
उल्कापिंड के घनत्व से पता चलता है कि यह ठोस धातु से नहीं बना है। ऐसा माना जा रहा है कि इसमें चट्टानी पदार्थ, सिलिके ट, कांच और रेत में पाए जाने वाले पदार्थ भी हैं। लैंड् समैन ने कहा कि इसके कोर में कु छ महत्वपूर्ण हो सकता है।हालांकि 2022 में हुए अवलोकन से पता चला कि इसका कोर लोहे का बना है। वैज्ञानिकों का मानना है कि साइकी का अध्ययन ग्रहों के निर्माण को लेकर सवालों के जवाब दे सकता है। 2020 में एक स्टडी में दावा किया गया था कि इस उल्कापिंड पर इतना ज्यादा लोहा है जो पूरी पृथ्वी की अर्थव्यवस्था से ज्यादा है।
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