जयपुर। कई बार ऐसा होता है कि बेगुनाह लोग झूठे केस में फंस जाते है। सबूतों के अभाव में कोर्ट उन्हें दोषी मानते हुए सजा सुना देती है। इसके बाद कुछ लोग बेगुनाही साबित करने के लिए ऊपरी अदालत में अपील करते हैं जिससे की उनके ऊपर लगा कलंग मिट सके। ऐसा ही मामला जयपुर में सामने आया है। यहां हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति की उम्रकैद को गलत करार देते हुए बरी किया है।
दरअसल, हाईकोट में जयपुर में पत्नी की हत्या से जुड़े मामले में आरोपी पति की उम्रकैद को गलत करार देते हुए 12 साल बाद बरी किया है। इसी के साथ हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को कहा है कि वह आरोपी प्रार्थी को 25 लाख रुपए बतौर मुआवजा तीन महीने में दे। हाईकोर्ट ने निचली कोर्ट के 11 मई 2016 के उस आदेश को भी रद्द कर दिया, जिसमें आरोपी को उम्रकैद सुनाई गई थी। जस्टिस पंकज भंडारी और भुवन गोयल ने यह आदेश आरोपी इकबाल की आपराधिक अपील को मंजूर करते हुए दिया।
पत्नी ने किया था सुसाइड…
हाईकोर्ट ने कहा कि आरोपी प्रार्थी ने दिए सबूतों से साबित होता है कि आरोपी की पत्नी ने सुसाइड किया था। ऐसे में ना उसने केवल पत्नी को खोया है। बल्कि सरकार के गलत तरीके से किए गए केस के चलते 12 साल चार महीने तक अपने तीन छोटे बच्चों के साथ भी नहीं रह पाया।
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पुलिस ने लगाया हत्या का आरोप…
इस मामले से जुड़े अधिवक्ता राजेश गोस्वामी और निखिल शर्मा ने बताया कि 13 मई 2011 को इकबाल की पत्नी की जलने से मौत हो गई थी। पुलिस ने आरोप लगाया कि पति इकबाल ने ही उसकी पत्नी की हत्या की है। जिस पर पुलिस ने इकबाल को गिरफ्तार कर कोर्ट में चालान पेश किया। घटना गलता गेट थाना इलाके की थी।
जयपुर की महिला उत्पीड़न मामलों की विशेष कोर्ट ने 11 मई 2016 को आरोपी को उसकी पत्नी की हत्या का अपराधी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई। निचली कोर्ट की उम्रकैद की सजा के खिलाफ आरोपी पति ने हाईकोर्ट में अपील दायर की। निचली कोर्ट की उम्रकैद की सजा के आदेश को रद्द कर उसे दोषमुक्त करने का आग्रह किया।
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निचली कोर्ट ने बेटे की गवाही भी नहीं मानी…
आरोपी के वकील निखिल शर्मा ने कहा कि अभियोजन ने उस डॉक्टर से पूछताछ नहीं की, जिसने महिला का इलाज किया था। अभियोजन इस तथ्य को जोड़ने में विफल रहा कि गिरफ्तारी के समय आरोपी की पतलून पर केरोसिन की बूंद थी। मृतका के 6 साल के बेटे की गवाही भी नहीं मानी, जो गलत था। उनका पक्ष पूरी तरह से सुना ही नहीं गया।