One Nation One Election : नई दिल्ली। केंद्र सरकार द्वारा 18 से 22 सितंबर तक ‘संसद का विशेष सत्र’ बुलाए जाने से सियासी हलकों में खलबली मच गई है। माना जा रहा है कि केंद्र सरकार का इस सत्र को बुलाने का मुख्य उद्देश्य लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने संबंधी विधेयक लाने का है। हालांकि, सरकार की तरफ से अब तक कोई भी जानकारी नहीं दी गई है।
लेकिन, वन नेशन वन इलेक्शन यानी एक देश एक चुनाव को लेकर अटकलों के बाजार के साथ देश की सियासत गरमा गई है। इन अटकलों के बीच विपक्षी दलों के रिएक्शन भी सामने आ रहे हैं। लेकिन, ‘एक देश एक चुनाव’ फॉर्मूला भारत के लिए नया नहीं है। देश में पहले भी चार बार इसी पैटर्न पर इलेक्शन हो चुके है।
आजादी के बाद पहली बार साल 1952 में ‘एक देश एक चुनाव’ फॉर्मूला पर इलेक्शन हुए थे। इसके बाद साल 1957, 1962 और 1967 में भी लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हुए थे। हालांकि इसके बाद इस व्यवस्था पर ब्रेक लग गया था। क्योंकि साल 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गई थी।
इसके बाद साल 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई थी। जिसके चलते एक साथ चुनाव कराने की ये व्यवस्था गड़बड़ा गई थी और बाद में राज्यों के चुनाव अलग होने लगे थे। इसी के साथ ही एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई थी।
लॉ कमीशन कई बार कर चुका इस फॉर्मूले का समर्थन
लॉ कमीशन ने साल 1990 में वन नेशन वन इलेक्शन का समर्थन किया गया था। हालांकि, तब इसे लागू करने पर विचार नहीं किया गया था। साथ ही विधि आयोग ने नोटा का विकल्प देने को कहा था, जो आज ईवीएम में मौजूद है। साल 2018 में भी लॉ कमीशन ने एक देश-एक चुनाव की वकालात की थी।
लॉ कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में साफ-साफ कहा था कि लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाने से सार्वजनिक धन की बचत होगी। हालांकि, केंद्रीय कानून मंत्रालय ने कहा था कि इसके लिए संविधान में संशोधन की जरूरत पड़ेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी एक देश एक चुनाव की वकालात कर चुके हैं।
एक देश एक चुनाव से क्या फायदें ?
इस व्यवस्था ने चुनाव में होने वाला भारी भरकम खर्च की बचत होगी। यानी बिल लागू होने से पैसों की बर्बादी रूकेगी। चुनाव की बार-बार तैयारियों से छुटकारा मिलेगा। विकास कार्यों की गति प्रभावित नहीं होगी। एक देश एक इलेक्शन बिल लागू होने से कालेधन और भ्रष्टाचार पर रोक लगने में मदद मिलेगी। हालांकि, पूरे देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराए जाने से चुनावी नतीजों में देरी हो सकती है।
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