छात्रों में बढ़ते तनाव को ऐसे करें दूर, परीक्षा में विफलता ही सुसाइड का सबसे बड़ा कारण 

राजस्थान के दौसा जिले के लालसोट उपखंड मुख्यालय पर दसवीं कक्षा की छात्रा खुशबू मीणा ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। खुशबू के पिता सरकारी…

This is how to remove increasing stress among students, failure in exam is the biggest reason for suicide

राजस्थान के दौसा जिले के लालसोट उपखंड मुख्यालय पर दसवीं कक्षा की छात्रा खुशबू मीणा ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। खुशबू के पिता सरकारी स्कूल में शिक्षक हैं। एक सुबह खुशबू की मां अपने बेटे की फीस जमा करवाने के लिए स्कूल गई थी। घर में खुशबू और उसका छोटा भाई था। इस दौरान खुशबू ने अपने कमरे में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। मृतका छात्रा ने अपने माता-पिता के लिए एक सुसाइड नोट छोड़ा, जिसमें उसने लिखा- आई एम सॉरी…पापा मम्मी, मुझसे नहीं हो पाएगा, मैं 95 प्लस परसेंटेज नहीं बना पाती शायद, मैं परेशान हो गई हूं, 10वीं क्लास से। मुझसे अब और नहीं सहा जाता, आई लव यू पापा, मम्मी एंड ऋषभ, आई एम सो सॉरी…आपकी खुशबू’।

ये घटना तो बानगी है दिमाग पर बढ़ते दबाव की। परीक्षा जैसे-जैसे होती जा रही है, परिणाम का समय जैसे- जैसे पास आ रहा है वैसे-वैसे यह प्रेशर बढ़ता जा रहा है। खतरे की सिटी बजा रहा है। इशारा कर रहा है कि बदलता मौसम और परीक्षा का तनाव जानलेवा हो सकता है। आंकड़े जहां परीक्षा के जानलेवा प्रेशर को जिम्मेदार ठहराते हैं, वहीं कुछ शोध हैं जो कहते हैं कि एक और कारक है जो इसके लिए जिम्मेदार है। इन अध्ययन की मानें तो एकाएक बदलते मौसम और बढ़ते तापमान से मानसिक स्थिति में उथल पुथल पैदा होती है। परीक्षा और बदलते हालातों का मेल घातक परिणाम देने वाला साबित हो सकता है। परीक्षा या परिणाम, यह किसी के जीवन का अंत नहीं होते हैं। अंक किसी की सफलता या असफलता का पैमाना नहीं होते हैं। यहां जरूरत है इस सीजन में बच्चों को संभालने की, उन्हें हिम्मत दिलाने की। जरूरी है कि उन्हें बताया जाए कि अंकों के आगे जहां और भी है, अभी जिंदगी के इम्तिहां और भी हैं…

क्या कहते हैं आंकड़े 

अगस्त 2021 में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की ओर से जारी आंकड़े बेहद व्यथित करने वाले हैं, जिनसे पता चलता है कि वर्ष 2017-19 के दौरान 14 से 18 आयु वर्ग के 24,568 किशोर-किशोरियों ने विभिन्न कारणों के चलते आत्महत्या कर ली। परीक्षाओं में असफलता और प्रेम प्रसंगों के चलते खुदकुशी करने वालों की संख्या सर्वाधिक है। यह बताता है कि परीक्षा का डर किस कदर विद्यार्थियों के मन पर मंडराता है। जहां तक बात राजस्थान की है, यहां आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं। सामूहिक सुसाइड के मामलों में प्रदेश देश में दूसरे नंबर पर और आत्महत्या के मामले में 27वें नंबर पर है। 

नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार पिछले साल प्रदेश में सामूहिक आत्महत्या के 22 मामले दर्ज किए गए थे, जिनमें 67 लोगों ने अपनी जान गंवा दी गई थी। वहीं, तमिलनाडू में सामूहिक आत्महत्या के 33 मामले दर्ज किए गए थे, जिससे यह राज्य देश में पहले नंबर पर है। इसके अलावा केरल तीसरे नंबर पर है, यहां सामूहिक सुसाइड के 12 केस सामने आए थे। सिंगल सुसाइड केस के मामले में राजस्थान का देश में 27वें नंबर पर है। हर साल यहां आत्महत्या के मामलों में इजाफा हो रहा है। 

हालांकि, इस साल प्रदेश में 2020 की तुलना में साल 2021 में आत्महत्या के केस में मामूली सी बढ़ोतरी हुई है। प्रदेश में 2021 में 5593 लोगों ने आत्महत्या कर अपनी जान देदी। वहीं, इससे पहले 2020 में 5546, 2019 में 4531, 2018 में 4333, 2017 में 4188, 2016 में 3678 और 2015 में 3457 आत्महत्याएं दर्ज की गईं थी। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार साल 2021 में प्रदेश में प्रति एक लाख लोगों में से 7 ने आत्महत्या करने जैसा घातक कदम उठाया था।

टॉप टेन कारण में से एक परीक्षा में विफलता 

देश में होने वाली आत्महत्याओं के शीर्ष 10 कारणों में से एक है, जबकि पारिवारिक समस्या शीर्ष 3 में है। विशेषज्ञों का कहना है कि कई बार बच्चे अपना अपमान या अपनी मांग ठुकराए जाने जैसी चीजों को स्वीकार नहीं कर पाते। विशेषज्ञों का कहना है कि इनमें से ज्यादातर आत्महत्याओं का कारण पढ़ाई के लिए बच्चों पर माता-पिता का दबाव और अच्छे रिजल्ट की उम्मीद है, जो छात्रों के कौशल या हितों के अनुरूप नहीं। महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश में इस क्षेत्र में सबसे खराब स्थिति है।

विद्यार्थियों में बढ़ रहा प्रतिशत 

देश में साल 2021 में सुसाइड से मौत के मामलों में दिहाड़ी मजदूर पेशे के लिहाज से सबसे बड़ा ग्रुप रहा। 42,004 दिहाड़ी मजदूरों की सुसाइड से मौत हुई, जो कि कुल सुसाइड का 25.6 फीसदी है। 2021 के दौरान हाउस वाइफ कैटेगरी में हुईं सुसाइड कुल सुसाइड की 14.1 फीसदी रहीं। इस कैटेगरी में सुसाइड के मामलों की संख्या 2020 में 22,374 से 3.6 फीसदी बढ़कर 2021 में 23,179 हो गई। रिपोर्ट से पता चलता है कि 2021 में स्टूडेंट सुसाइड की संख्या 13,089 दर्ज की गई, जो 2020 में12,526 थी। वहीं, 2021 मेंरिटायर्ड लोगों की सुसाइड की संख्या 1,518 रही, जबकि ‘अन्य व्यक्तियों’ की कैटेगरी में 23,547 सुसाइड दर्ज की गईं।

मनोबल बढ़ाने की है जरूरत 

बच्चों के स्वस्थ विकास के लिए एक सुरक्षित और सुखी पारिवारिक माहौल की आवश्यकता है। हमें वह दुनिया अपनी भावी पीढ़ी को देनी होगी, जिसमें ऐसी शिक्षा पद्धति हो जो प्रतिभा को निखारने में विश्वास करें, मात्र अंकों पर आधारित ना हो। जो बच्चों के मन से परीक्षा का डर दूर कर सकें। रोचक तरीके से एग्जाम आयोजित किए जाएं। इसके जरिए हमें अपने बच्चों की इन अकाल मौतों को टालना है तो हमें वह प्रणाली विकसित व लागू करनी होगी जिसे बच्चे खुशी से अपना सकें। 

ऐसा पाठ्यक्रम हो जो उन पर बोझ ना बने। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि शिक्षकों में विशिष्टता की जरूरत है, क्योंकि बच्चों से किया गया खराब व्यवहार उनके मनोबल को कमजोर कर देता है और यह उनके विफल होने का एक प्रमुख कारण बनता है। कोचिंग सिटी का नाम भी राजस्थान में स्टूडेंट्स के सुसाइड के मामलों में कोचिंग सिटी कोटा का नाम कई बार सामने आता है। 

एक अधिकारिक आंकड़ों की मानें तो राज्य सरकार की तरफ से जारी अधिकृत आंकड़ों में बताया गया है कि पिछले चार साल में अकेले कोटा में 52 विद्यार्थियों ने आत्महत्या की है। इनमें से 21 छात्राएं हैं। पढ़ाई में पिछड़ जाने के कारण उनमें आत्मविश्वास की कमी होना, माता-पिता की छात्रों से उच्च महत्वाकांक्षा होना, छात्रों में शारीरिक और मानसिक और पढ़ाई संबंधी तनाव होना, आर्थिक तंगी, ब्लैकमेलिंग और प्रेम प्रसंग को अहम कारण माना है। इस साल कोटा में ही चार स्टूडेंट्स अपनी इहलीला समाप्त कर चुके हैं।

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