गोबर और पराली को मिला कर बना दिया गोकाष्ठ, नहीं काटने पड़ेंगे पेड़, पैसों की भी बचत होगी

गोकाष्ठ देसी गाय के गोबर और पराली से बना उत्पाद है। पराली को किसान जला देते हैं क्योंकि उपज के बाद बची पराली का कोई उपयोग नहीं होता। इसे जमीन में गाढ़ दिया जाए तो ये भूमि को बंजर बना देती है, इसलिए किसान इसे जलाते हैं।

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जयपुर के सीताराम गुप्ता पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने के लिए मुहिम चलाए हुए हैं। इसके लिए उन्होंने एक स्टार्टअप की शुरुआत की जिसे गोमय परिवार नाम दिया गया। डॉ. गुप्ता देसी गाय के गोबर और पराली से गौकाष्ठ बनाते हैं जिन्हें कंपनीज, फैक्ट्रियों, हवन, ईंधन और ऊर्जा के विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है वहीं इसे मृत शवों के अंतिम संस्कार में भी काम में लिया जा रहा है।

सीताराम गुप्ता बताते हैं, उनके गो काष्ठ को जयपुर शहर के कई श्मशान घाट पर उपलब्ध कराया गया है जहां लोग अपने परिजनों के दुनिया से जाने के बाद अंतिम विदाई देने के काम में ले रहे हैं। अभी तक वे करीब 250 से ज्यादा लोगों को गोकाष्ठ से अंतिम संस्कार करवा चुके हैं। वे कहते हैं, ये एक समाज सेवा है, समाज के असक्षम लोगों के लिए ये एकदम फ्री ऑफ कॉस्ट सेवा है, उनसे हम पैसा नहीं लेते हैं।

पर्यावरण को बचाने की मुहिम है गोमय समिधा

सीताराम कहते हैं, गोमय समाज को वापस देने का एक छोटा सा प्रयास है। पूरी दुनिया पर्यावरण प्रदूषण से जूझ रही है। आज सबसे ज्यादा जरूरत पर्यावरण को सुरक्षित बनाने की है। गोकाष्ठ देसी गाय के गोबर और पराली से बना उत्पाद है। पराली को किसान जला देते हैं क्योंकि उपज के बाद बची पराली का कोई उपयोग नहीं होता। इसे जमीन में गाढ़ दिया जाए तो ये भूमि को बंजर बना देती है, इसलिए किसान इसे जलाते हैं।

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इसी पराली को गोबर और हवन सामग्रियों के साथ मिलाकर गोकाष्ठ बनाया। इससे एक तो अंतिम संस्कार में लगने वाली लकड़ियों की बचत से प्रदूषण कम होगा दूसरा पराली प्रदूषण को भी कम किया जा सकेगा। वे कहते हैं, एक शव के संस्कार में दो पेड़ लकड़ी वेस्ट होती है। हम पेड़ लगाते हैं उसे 10-15 साल तक पालते पोसते हैं, उसके बड़ा होते ही काटकर जला दिया जाता है। ये सबसे बड़ी विडंबना है कि जो पेड़ हमें ऑक्सीजन देते हैं उनका महत्व कोई नहीं समझ रहा।

गाय के बारे में संपूर्ण जानकारी का खजाना समेटे है यह बुक

डॉ. गुप्ता देशभर में गोमय अभियान चला रहे हैं। इसके लिए लोगों से जीवन में गोमय उत्पाद को अपनाने का संकल्प लिया जा रहा है। ये संकल्प गोबर से बने कागज का है। वे बताते हैं, पिछले साल गाय गोबर और गोकाष्ठ व इससे संबंद्ध उत्पादों पर अध्यन करके एक किताब लिखी थी ‘गोमय ज्ञान सागर’। इसे गाय के बारे में पूरी जानकारी का खजाना कहा जा सकता है। ऐसी किताब देश में पहली बार लिखी गई। इस किताब को गोबर के कागज पर छापा गया है। इस पुस्तक को अमेज़न के बेस्ट सेलर अवार्ड खिताब मिला है।

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केंद्र सरकार के स्टार्टअप इंडिया प्रोग्राम में चुना गया

सीताराम बताते हैं, गोकाष्ठ प्रकृति का संरक्षण करती है, पेड़ कटने से बचेंगे, पशु-पक्षियों का बसेरा बचेगा, पर्यावरण बचेगा, पराली से किसान को संबल मिलेगा। एक प्रोडक्ट के इतने सारे फायदे हो तो समाज को नि:संदेह लाभ होगा ही होगा। पंचगव्य में एमडी करने के बाद हमने गहरी रिसर्च की और पराली व गोबर के संयोजन से गोकाष्ठ बनाई जिसे समिधा का नाम दिया। ये दुनिया भर में ऐसा पहला प्रयोग है। हमारे इस प्रयास को केंद्र सरकार के स्टार्टअप इंडिया प्रोग्राम में चुना गया और एमएनआईटी के एमआईआईसी परिसर में ऑफिस के लिए हमें जगह उपलब्ध कराई गई।

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