जयपुर। राजस्थान सरकार ने राइट टू हेल्थ बिल (Right To Health) विधानसभा में पास कर दिया है। लेकिन इस बिल के विरोध में अब तक निजी अस्पतालों के डॉक्टर प्रदर्शन कर रहे हैं। सीएम अशोक गहलोत बार-बार डॉक्टर्स से अपील कर रहे हैं कि वे इस तरह का प्रदर्शन ना करें। उनकी जो मांगे हैं वे मान ली गई हैं। फिर भी इस तरह के प्रदर्शन करने का क्या मतलब है? सीएम गहलोत ने यह भी कहा है कि वह जनसेवा समझ कर अपने काम को करें, ना कि व्यापार को समझ कर।
आर्थिक तंगी के चलते नहीं हो पाता इलाज
राइट टू हेल्थ (Right To Health) लोगों के लिए कितना जरूरी है इसके लिए सरकार ने बकायदा एक वीडियो मैसेज जारी किया है। जिसमें उन्होंने एक केस स्टडी कर बताया है कि चिकित्सा एक सेवा है जनसेवा है। इस केस में उन्होंने बताया कि दिल्ली के होटल में 24 साल के युवक ने आत्महत्या कर ली थी, उसने ऑक्सीजन के ओवरडोज से अपनी जान ले ली थी। पुलिस ने बताया कि लड़के के शव के पास मिले सुसाइड नोट से मालूम हुआ कि वह लंबे समय से अपनी बीमारी को लेकर परेशान था। क्योंकि उसके इलाज में बेतहाशा पैसा भी खर्च हो चुका था। वह नहीं चाहता था कि उसके माता-पिता उसके इलाज में और पैसा खर्च करें। क्या उम्र थी नीतीश की, जवान था घर का चिराग था।
आत्महत्या करने तक को मजबूर हो जाते लोग
अपने माता-पिता का संबल था। क्या बीती होगी उन बेचारों पर जिन्होंने अपने बेटे को खुश देखने के लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया था। यह दिखाता है कि आर्थिक तंगी के लोगों के इलाज में बाधा बनती है। कई बार तो दुर्भाग्य से खुदकुशी तक की नौबत आ जाती है। ऐसे समय पर हमारी सरकार राइट टू हेल्थ बिल लेकर आई। अगर लड़के का इलाज सरकारी मदद से हो रहा होता तो क्या वह अपनी ही जान लेने के लिए मजबूर होता।
इसलिए हमने महसूस किया कि हर जिंदगी अनमोल है और बेहतर इलाज सब का हक होना चाहिए। किसी भी परिवार का चिराग आर्थिक तंगी के चलते बुझना पूरे समाज के लिए शर्मिंदगी की बात है। राजस्थान में सबसे पहले यह लागू किया गया, अब यह सभी प्रदेशों में लागू किया जाना चाहिए।
टस से मस नहीं हो रहे हैं निजी अस्पतालों के डॉक्टर्स
बता दें कि राइट टू हेल्थ का निजी अस्पताल जबरदस्त विरोध कर रहे हैं। कल तो उन्होंने जयपुर में महारैली तक निकाल ली। अस्पतालों में उन्होंने इमरजेंसी सेवाएं तक बंद कर दी हैं। जिससे सरकारी अस्पतालों पर भार आ गया है। मरीजों को इलाज के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है, कई इमरजेंसी केस अस्पतालों में ही दम तोड़ रहे हैं, सरकार भी बार-बार ये हड़ताल खत्म करने की अपील कर रही है लेकिन निजी डॉक्टर्स टस से मस नहीं हो रहे हैं।