सनातन धर्म में धार्मिक चिन्हों और प्रतीकों का बहुत महत्व है। निशान या चिन्ह पवित्र माने जाते हैं। इन चिन्हों का प्रयोग शुभ अवसरों पर किया जाता है।स्वास्तिक,ओम,शुभ-लाभ ऐसे ही चिन्ह हैं जिनका प्रयोग किसी पूजा -स्थल,मंदिर, किसी धार्मिक अनुष्ठान और व्रत-त्यौहार में किया जाता है। हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत गणेशजी की पूजा करके होती है। इसके साथ ही पूजा स्थल पर और घर के मुख्य द्वार पर शुभ-लाभ लिखा होता है। जानते हैं इनका गणेशजी से क्या संबंध है और इन्हें मुख्य द्वार पर क्यों लिखा जाता है।
भगवान गणेश समृद्धि,बुद्धि और विवेक देने वाले और कष्टों को हरने वाले हैं। जिन लोगों पर गजानन की कृपा होती है उन्हें जीवन में किसी तरह की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता। गणेशजी भक्तों पर प्रसन्न होकर उनके दुखों को दूर करते हैं और उनके सारे मनोरथ पूर्ण करते हैं। भगवान गजानंद रिद्धि-सिद्धि के दाता और शुभ-लाभ के प्रदाता हैं। वह प्रसन्न हो जायें तो रोग-शोक,बीमारी ,संकट दूर करते हैं।
विश्वकर्मा की पुत्रियां हैं रिद्धि-सिद्धि
शास्त्रों के अनुसार भगवान गणेश का विवाह प्रजापति विश्वकर्मा की पुत्रियों ऋद्धि और सिद्धि से हुआ था। ऋद्धि से लाभ और सिद्धि से क्षेम या शुभ नाम के पुत्र हुए। इन्हें ही शुभ-लाभ के नाम से जाना जाता है। गणेश पुराण के अनुसार शुभ -लाभ को केशं और लाभ भी कहा जाता है। वहीं ऋद्धि नाम का भावार्थ है बुद्धि,जिसे हिंदी में शुभ भी कहा जाता है। सिद्धि का अर्थ है आध्यात्मिक शक्ति की पूर्णता ,यानी लाभ। ज्योतिष की नजर से देखने पर ,मुहूर्त्त और चौघड़िया देखते समय उसमें अमृत के साथ शुभ और लाभ को भी महत्वपूर्ण माना जाता है।
गजानन का प्रतीक है स्वास्तिक
गणेश पुराण के अनुसार स्वास्तिक भगवान गणेश का ही प्रतीक माना जाता है। किसी भी शुभ,मांगलिक कार्य और कल्याणकारी कार्यों में इसकी स्थापना अवश्य की जाती है। इसमें सभी बाधाओं को हरने और अमंगल को दूर करने की शक्ति होती है।घर के मुख्य द्वार के ऊपर मध्य में स्वास्तिक और बायीं और शुभ और दायीं तरफ लाभ लिखा जाता है। स्वास्तिक की दोनों अलग-अलग रेखायें,गणेशजी की पत्नियों ऋद्धि और सिद्धि की प्रतीक हैं। घर के बाहर शुभ-लाभ लिखने का यही तात्पर्य है कि सुख और समृद्धि हमेशा स्थायी रूप से बनी रहे। लाभ लिखने का यह भाव है कि ,ईश्वर की कृपा से उनकी आय बढ़ती रहे और लाभ होता रहे।
वास्तु दोष होता है दूर
ज्योतिष के अनुसार स्वास्तिक के दाएं -बाएं ,शुभ -लाभ लिखने से वास्तु दोष दूर होता है। यदि किसी के घर या व्यावसायिक प्रतिष्ठान में वास्तु दोष या नकारात्मक ऊर्जा हों तो,पूर्व,उत्तर-पूर्व और उत्तर दिशा में शुभ-लाभ सहित स्वास्तिक चिन्ह लगाना चाहिए। अगर ऐसा ना कर सकें तो अष्ट धातु या तांबें का स्वास्तिक भी लगा सकते हैं।