राजस्थान में शुरू हुआ ‘आयाराम गयाराम’ का दौर, चुनावों से पहले पायलट के करीबी ने छोड़ा कांग्रेस का दामन, BJP में होंगे शामिल

राजस्थान में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले ‘आयाराम गयाराम’ का दौर शुरू हो गया है।

image 2023 05 19T102922.238 | Sach Bedhadak

Subhash Maharia : जयपुर। राजस्थान में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले ‘आयाराम गयाराम’ का दौर शुरू हो गया है। पूर्व केंद्रीय मंत्री सुभाष महरिया और पूर्व आईपीएस रामदेव सिंह खैरवा आज बीजेपी का दामन थामने जा रहे है। जयपुर स्थित बीजेपी मुख्यालय में सुबह 11.30 बजे महरिया और खैरवा वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी में बीजेपी की सदस्यता ग्रहण करेंगे। बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी दोनों को बीजेपी की सदस्यता ग्रहण करवाएंगे। इस दौरान नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ सहित भाजपा पदाधिकारी मौजूद रहेंगे।

महरिया की घर वापसी से विधानसभा चुनाव से पहले शेखावाटी क्षेत्र में कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है। पांच साल बाद सुभाष महरिया की घर वापसी हो रही है। शेखावाटी अंचल में कद्दावर जाट नेताओं में महरिया की गिनती होती है। भाजपा लक्ष्मणगढ़ से महरिया को विधानसभा चुनाव लड़ा सकती है। महरिया को पायलट का काफी करीबी माना जाता है। क्योंकि पायलट ही महरिया को कांग्रेस में लाए थे। लेकिन, कांग्रेस सरकार भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कुछ भी नहीं कर पाई है और पायलट भी इसी मुद्दे को बार-बार उठा रहे है। लेकिन, अभी तक भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की है। इसी से आहत होकर महरिया ने कांग्रेस का साथ छोड़ने का फैसला किया है। मल्लिकार्जुन खड़गे को लिखे पत्र में भी महरिया ने इस मुद्दे का जिक्र किया है।

महरिया ने बताया-क्यों छोड़ा कांग्रेस का ‘हाथ’?

यह इस्तीफा महरिया ने अपने टि्वटर हैंडल पर भी शेयर किया है। जिसमें उन्होंने लिखा है कि प्रदेश की कांग्रेस सरकार घोषणापत्र के वादे भूल चुकी है। ऐसे में प्रदेश का किसान और युवा खुद को ठगा सा महसूस कर रहा है। मल्लिकार्जुन खड़गे को पूर्व केंद्रीय मंत्री सुभाष महरिया ने लेटर लिखा है कि मेरे द्वारा कांग्रेस पार्टी में शामिल होने के पश्चात असंख्य कार्यकर्ताओं के साथ जमीनी स्तर पर जी-तोड़ मेहनत की गई। जिसके परिणाम स्वरूप सीकर में पिछले चुनाव में सभी 8 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस पार्टी को सफलता प्राप्त हुई और प्रदेश में कांग्रेस नीत सरकार का गठन हुआ। हमारे द्वारा किसान व नौजवान को गांव-गांव, ढाणी-ढाणी जाकर विश्वास दिलाने का प्रयास किया गया कि कांग्रेस नीत सरकार का गठन होने पर कांग्रेस पार्टी द्वारा घोषणा पत्र में किए गए वादे शत प्रतिशत पूरे किए जाएंगे। इसके बाद साल 2019 में लोकसभा चुनाव में प्रदेश की सभी 25 लोकसभा सीटों पर कांग्रेस पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा। लेकिन कांग्रेस पार्टी ने एक भी समीक्षा बैठक आज तक नहीं की। वर्तमान में सत्तासीन कांग्रेस नीत सरकार घोषणापत्र के वादों को पूरी तरह से भुला चुकी है। प्रदेश में कर्ज माफी और बेरोजगारी के वादों पर भरोसा करके वोट देने वाला किसान व युवा खुद को ठगा सा महसूस कर रहा है। सीकर जिले में कांग्रेस पार्टी के जमीनी स्तर पर मेहनत करने वाले कार्यकर्ताओं की घोर उपेक्षा की गई है। ऐसे में कांग्रेस पार्टी से जुड़े रहकर काम करना मेरे लिए संभव नहीं है। इसलिए मैं पार्टी से इस्तीफा देता हूं।

जानिए, कैसा है महरिया राजनीतिक सफर?

सुभाष महरिया का जन्म सीकर में 29 सितंबर 1957 को हुआ। उन्होंने सीकर के एसके कॉलेज से बीए पास किया। वे पेशे से किसान, सामाजिक कार्यकर्ता और उद्योगपति हैं। महरिया साल 1998, 1999 और 2004 में लोकसभा के लिए चुने गए। वे 1996 के चुनाव में कांग्रेस के हरिसिंह से हार गए थे। लेकिन, अगले ही चुनाव में उन्होंने हरीसिंह को हरा दिया था। इसके बाद लगातार वो तीन बार सीकर से सांसद चुने गए। साल 2009 के चुनाव में हार के बाद 2014 के चुनाव में भाजपा ने उन्हें उम्मीदवार नहीं बनाया। इस बात से नाराज होकर वे कांग्रेस में शामिल हो गए थे।

महरिया 1998 और 1999 से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए इसके बाद 2004 तक केंद्रीय राज्यमंत्री ग्रामीण विकास मंत्रालय में रहे। 2004 में फिर लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए इसके बद 2010 में भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बनें थे। जबकि 2011 में उन्हें बीजेपी किसान मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया था। वो अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री भी रहे थे। वो बीजेपी के किसान मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रह चुके है। लेकिन, जब महरिया बीजेपी से नाराज हो गए थे तब तत्कालीन पीसीसी चीफ सचिन पायलट ने उन्हें कांग्रेस में लाने में अहम भूमिका निभाई थी। इसलिए महरिया को पायलट का करीबी माना जाता है। महरिया ने साल 2019 में उन्होंने भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ा था। लेकिन, अब पांच साल बाद महरिया वापस बीजेपी में जा रहे है।

ये खबर भी पढ़ें:-ये कैसी नेतागिरी! छात्रसंघ पदाधिकारियों के दबाव में प्रशासन, RU को लगी हजारों की चपत

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *