बरबासन देवी का मेला : भक्तों ने जीभ में होकर निकाले त्रिशूल, मां का चमत्कार देख दंग रह गए लोग

माता के विशेष भक्त ने लोहे के नुकीले त्रिशूल को जीभ में घोंपकर भक्तों को देवी की शक्ति दिखाई। यह नजारा देख हर कोई दंग रह गया।

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सपोटरा। करौली जिले के उपखंड मुख्यालय सपोटरा से 7 किलोमीटर दूर गांव दुदराई में अरावली पहाड़ियों पर स्थित बरबासन देवी मंदिर में चैत्र शुक्ल अष्टमी से भरने वाला तीन दिवसीय मेला सालवाड़ कार्यक्रम के साथ शुरू हो गया है। जिसमें हजारों श्रद्धालुओं ने माताजी के दर्शन कर मनौती मांगी। इस दौरान माता के विशेष भक्त ने लोहे के नुकीले त्रिशूल को जीभ में घोंपकर भक्तों को देवी की शक्ति दिखाई। यह नजारा देख हर कोई दंग रह गया।

मां के भक्त प्रताप पाकड़ कोडियाई, प्रशांत जादौन ने बताया कि बुधवार को चैत्र शुक्ल नवरात्रा की अष्टमी पर मंदिर के माहाड़ी (पुजारी) लक्ष्मीचंद, अमरलाल, बद्रीलाल तथा मुनीम मीणा श्रीराम बैरवा द्वारा युद्ध और विजय का इतिहास समेटे बरवासन देवी मंदिर पर पंच पटेलों की उपस्थिति में जयकारों ढोल नगाड़ों की थापों पर अद्भुत सालवाड़ कार्यक्रम में लोहे के नुकीले त्रिशूल जीभ में घोंपकर भक्तों को देवी की शक्ति का प्रदर्शन कर मंदिर की परिक्रमा की गई रोंगटे खड़े करने वाले दृश्य को देखकर श्रद्धालु आश्चर्य चकित होकर दंग रह गए। इस दौरान दोपहर करीब एक बजे होने वाले कार्यक्रम के दौरान हवा भी थम गई तथा श्रद्धालु पसीने से तरबतर हो गए।

किवदंतियों के अनुसार मीणा समाज के भोगला और भगवान के वंशजों द्वारा देवी की पूजा तथा एक बनजारा द्वारा मूर्ति स्थापना करना भी बताया जाता है। बरवासन देवी मंदिर के गर्भगृह में कैलादेवी, बिरवासन, चामुंडा गणेश जी की मूर्ति स्थापित होने के साथ रणथम्भौर दुर्ग की 32 खम्भों की छतरी की तर्ज पर मंडप गृह बना हुआ है।

इसके अतिरिक्त सेढ़ माता, महादेव जी, हनुमानजी तथा ठाकुरजी का मंदिर भी स्थित है। माता के मंदिर के पास पहाड़ पर आमेर का चमत्कार पूर्ण हनुमानजी मंदिर है। कहावत है कि इस मंदिर पर सवामणी की मनौती पर बांझ को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। मेला आयोजन कमेटी से मिली जानकारी के अनुसार 30 मार्च गुरुवार को मेले में लोक नृत्य और लोकगीतों का नजारा देखने को मिलेगा वही 31 मार्च शुक्रवार को विशाल कुश्ती दंगल का आयोजन भी होगा। इस अवसर पर दिनभर बड़ी संख्या में माता के दर्शनों के लिए श्रद्धालुओं की लाइन लगी रही।

(सागर शर्मा)

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