अंटार्कटिका (Antarctica) में पिछले दिनों मार्च का तापमान जब सामान्य से 38 डिग्री सेल्सियस अधिक हुआ तो लॉस एंजिल्स के आकार की बर्फ की एक परत पिघल गई। वैज्ञानिकों को यह तो नहीं पता कि अत्यधिक तापमान ने इस घटना में क्या भूमिका निभाई, लेकिन ‘वायुमंडलीय नदी’ से निकलने वाली गर्मी इसके लिए घातक साबित हुई। वायुमंडलीय नदी आर्द्रता की एक लंबी धारा होती है, जो गर्म हवा और जलवाष्प को उष्णकटिबंध क्षेत्रों से धरती के अन्य हिस्सों तक लेकर जाती है।
बीते गुरुवार को ही प्रकाशित एक नए अध्ययन में बताया गया है कि ‘आसमान की नदियां’, जो (Antarctica Melts) बारिश कराती हैं और बर्फ गिराती हैं, अत्यधिक तापमान, सतह को पिघलाने, समुद्री बर्फ को कमजोर करने और महासागरों का जलस्तर बढ़ाने के लिए जिम्मेदार होती हैं। इन परिस्थितियों का अध्ययन अंटार्कटिका की दो बर्फ की परतों के पिघलने के दौरान किया गया। लारसेन ए और बी बर्फीली परतें क्रमशः 1995 और 2002 की गर्मियों में पिघल गई थीं। लारसेन सी के पिघलने का खतरा है।
इधर, भारत को घेरे समुद्रों का जलस्तर भी बढ़ रहा है। यही हाल रहा तो तटीय शहरों (Antarctica Melts) जैसे मुंबई, चेन्नई, गोवा, विशाखापत्तनम, ओडिशा में निचले इलाकों के जलमग्न होने का खतरा है। इसका असर यह देखा जा रहा है कि इन शहरों को गर्म हवाओं और भारी वर्षा का सामना करना पड़ रहा है।
अध्ययन के अनुसार बढ़ते पर्यावरण संकट ने खतरे को और बढ़ा दिया है और जैसे-जैसे तापमान (Antarctica Melts) बढ़ रहा है, बची हुई सबसे बड़ी परत लारसेन सी पर भी खतरा मंडरा रहा है। यह अध्ययन नेचर जर्नल कम्युनिके शन अर्थ एंड एनवायर्नमेंट में प्रकाशित हुआ है। अंटार्कटिका की बर्फीली चादरों को अस्थिर करने के कई कारक हैं। गर्म और शुष्क हवाएं जो ठंडी हवाओं के ऊपर बहने के बाद पहाड़ों से नीचे की ओर बहती हैं।
शुष्क हवाएं तापमान में नाटकीय ढंग से बदलाव का कारण बन सकती हैं, जो अंटार्कटिका में (Antarctica Melts) बर्फ के पिघलने की सबसे बड़ी वजह है। अगर लारसेन सी परत पिघलती है तो चिता का कारण बन सकती है, क्योंकि इससे समुद्र का जल स्तर और तेजी से बढ़ेगा। दुनिया में बर्फ की परतें टूट कर समुद्र तक पहुंच रही हैं, जिससे जलस्तर पहले से बढ़ ही रहा है।