चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है। इन दिनों जयपुर के आमेर में स्थित मशहूर माता शिला देवी का मंदिर है। इस मंदिर में हर साल लाखों श्रद्धालुओं का सेलाब माता की एक झलक देखने के लिए आता है।
माता शिला देवी की मान्यता इस कदर है कि, नवरात्र के छठे दिन अलसुबह ही भक्तों की तात लग जाती है। कहा जाता है कि, माता से जो भी मांगो वो मनोकामना पूरी होती है।
वैसे तो इस ऐतिहासिक मंदिर से जुड़े कई किस्से हैं। लेकिन इनमें से एक किस्सा बेहद खास है। कहा जाता है कि, मां की प्रतिमा की इतिहास बंगाल से जुड़ा हुआ है।
ऐसा कहा जाता है कि, माता की प्रतिमा को राजा मानसिंह बंगाल के कूचबिहार से लेकर आए थे। इस मूर्ति को वो राजा केदार को हरा कर लेकर आए थे। शिला माता के मंदिर का इतिहास 500 साल से भी ज्यादा पुराना है।
कहते हैं राजा मानसिंह शिला देवी की प्रतिमा को 1580 में जयपुर लाए थे। जिसके बाद से ये कहावत भी काफी मशहूर है, ”सांगानेर को सांगो बाबो जैपुर को हनुमान, आमेर की शिला देवी लायो राजा मान।“
मानसिंह अक्बर के सेनापति थे और कहा जाता है कि माता के आशिर्वाद से उन्होंने कई युद्ध जीते थे। अक्सर माता के मुख को लेकर लोगों के मन में कफी सवाल उठते हैं कि, उनका मुख एक तरफ घुका क्यों है।
कहते हैं कि, जब माता के यहां लाया गया तो इस वादे के साथ लाया था की रोज उन्हें एक नरबलि चढ़ाई जाएगी। कुछ समय तो ये चलता रहा लेकिन बाद में पशु बलि दी जाने लगी।
इस बात से माता नराज हो गई और अपना मुंह मोड़ लिया। माता को आखिरी बार पशुबलि 1972 में चढ़ाई गई थी। इसके बाद जैन धर्मावलम्बियों के विरोध के बाद इसे बंद कर दिया।