आखिर वीरांगनाओं की मांगें क्यों नहीं मान रही सरकार ? इन 5 बातों में समझिए, कहां फंसा है ‘पेंच’ ?

पुलवामा अटैक के शहीदों की वीरांगनाएं बीते 11 दिनों से धरने पर बैठी हुई थी लेकिन बीती देर रात पुलिस के उन्हें धरने स्थल पर…

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पुलवामा अटैक के शहीदों की वीरांगनाएं बीते 11 दिनों से धरने पर बैठी हुई थी लेकिन बीती देर रात पुलिस के उन्हें धरने स्थल पर से उठाकर ले जाने को लेकर आज पूरे देश में सियासत गरमाई हुई है। चारों तरफ एक ही चर्चा छिड़ी है कि आखिर देश के लिए जान निछावर कर देने वाले शहीदों की वीरांगनाओं की मांगे सरकार क्यों नहीं सुन रही है?

इसलिए मांगें नहीं मान सकती सरकार

इस सवाल का जवाब जानने के लिए हमें मुख्य पांच बातों पर जाना होगा कि आखिर वीरांगनाओं की मांगों को लेकर सरकार का तर्क और शहीदों के परिजनों का तर्क क्या है? कौन सी मांगे वाजिब है और कौन सी मांगे पूरी नहीं की जा सकती हैं।

1- दरअसल वीरांगनाएं वे मांगें उठा रही हैं जो गहलोत सरकार के मंत्रियों ने शहीदों की शहादत के मौके पर उनके घर जाकर की थी।

2- वीरांगनाओं के मुताबिक उनमें से एक भी वादा पूरा नहीं हुआ है इसलिए वे सरकार से उन्हीं घोषणाओं की पूर्ति की मांग कर रही हैं।

3- इधर सरकार का कहना है कि जो घोषणाएं उनके मंत्रियों विधायकों ने की थी, उनमें से 90% तक का काम हो चुका है। बाकी कोटा के शहीद हेमराज की प्रतिमा स्थापित करने को लेकर के कुछ विवाद था जिसे भी लगभग सुलझा लिया गया। इस विस्तृत ब्यौरा विधानसभा में भी दिया गया था।

4- सरकार का यह भी कहना है कि वीरांगनाएं शहीदों के भाइयों यानी उनके देवरों को नौकरी पर रखने की मांग कर रही हैं जो कि वाजिब नहीं है। क्योंकि शहीदों के भाइयों को नौकरी देने का प्रावधान कहीं नहीं है। उनके बच्चों को नौकरी दी जा सकती है लेकिन बच्चे अभी नाबालिग हैं।

5- वीरांगनाओं की यह मांगे और सरकार का नियमों में बंद रहकर उनका पालन करना ही इस धरने की जड़ बना हुआ है।

नियमों में बंधी है सरकार

सीएम अशोक गहलोत ने हाल ही में वीरांगनाओं की मांगों को लेकर अपना पक्ष रखा था। उन्होंने साफ-साफ कहा था कि हम सभी की जिम्मेदारी है कि हम शहीदों एवं उनके परिवारों का उच्चतम सम्मान करें। राजस्थान का हर नागरिक शहीदों के सम्मान का अपना कर्तव्य निभाता है परन्तु भाजपा के कुछ नेता अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए शहीदों की वीरांगनाओं का इस्तेमाल कर उनका अनादर कर रहे हैं। यह कभी भी राजस्थान की परम्परा नहीं रही है। मैं इसकी निंदा करता हूं।

सीएम ने कहा कि शहीदों के बच्चों का हक मारकर किसी अन्य रिश्तेदार को नौकरी देना कैसे उचित ठहराया जा सकता है? जब शहीद के बच्चे बालिग होंगे तो उन बच्चों का क्या होगा? उनका हक मारना उचित है क्या? वर्ष 1999 में मुख्यमंत्री के रूप में मेरे पहले कार्यकाल के दौरान शहीदों के आश्रितों के लिए राज्य सरकार ने कारगिल पैकेज जारी किया एवं समय-समय पर इसमें बढ़ोत्तरी कर इसे और प्रभावशाली बनाया गया है। कारगिल पैकेज में शहीदों की पत्नी को पच्‍चीस लाख रूपये और 25 बीघा भूमि या हाउसिंग बोर्ड का मकान, मासिक आय योजना में शहीद के माता-पिता को 5 लाख रुपये सावधि जमा, एक सार्वजनिक स्‍थान का नामकरण शहीद के नाम पर एवं शहीद की पत्‍नी या उसके बच्चों को नौकरी दी जाती है।

राजस्थान सरकार ने प्रावधान किया है कि अगर शहादत के वक्त वीरांगना गर्भवती है और वो नौकरी नहीं करना चाहे तो उसके बच्चे के लिए नौकरी सुरक्षित रखी जाएगी जिससे उसका भविष्य सुरक्षित हो सके। इस पैकेज के नियमों के मुताबिक ही पुलवामा शहीदों के आश्रितों को मदद दी जा चुकी है। शहीद परिवारों के लिए ऐसा पैकेज शायद ही किसी दूसरे राज्य में हो।

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