जयपुर में डॉक्टरों का कमाल… ब्लड ग्रुप मैच नहीं, फिर भी सफल किडनी ट्रांसप्लांट

राजधानी के डॉक्टरों ने चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में अद्भुत पहल दिखाते हुए इलाज की नई राह खोल दी है।

sms | Sach Bedhadak

जयपुर। राजधानी के डॉक्टरों ने चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में अद्भुत पहल दिखाते हुए इलाज की नई राह खोल दी है। अंगदान करने वाले और अंग प्राप्त करने वाले का ब्लड ग्रुप अलग-अलग होते हुए भी डॉक्टर्स ने किडनी ट्रांसप्लांट कर दिखाया, वहीं प्रदेश के किसी भी सरकारी मेडिकल कॉलेज में रोबोटिक सर्जरी की शुरुआत एसएमएस से हुई है। एसएमएस के डॉक्टरों ने रोबोट की सहायता से 5 सर्जरी की हैं। अस्पताल के जनरल सर्जरी विभाग के डॉक्टरों ने पित्त की थैली, हर्निया की सर्जरी की है।

अधीक्षक डॉ. अचल शर्मा और यूरोलॉजी विभाग के एचओडी डॉ.शिवम प्रियदर्शी ने बताया कि रोबोटिक सर्जरी से बिना चिर फाड के इलाज हो सकेगा। वहीं फोर्टिस के डॉक्टर्स ने एक क्रिटिकल किडनी ट्रांसप्लांट कर दिखाया है। डॉक्टरों ने एबीओ इन्कम्पैटेबल ट्रांसप्लांट तकनीक का उपयोग करते हुए किडनी ट्रांसप्लांट कर मरीज को जीवनदान दिया।

क्या है एबीओ इन्कम्पैटेबल सर्जरी

डॉ. राजेश गरसा, सीनियर कं सल्टैंट, नेफ्रोलॉजी ने बताया कि एबीओ इन्कम्पैटेबल में सर्जरी तब की जाती है, जब अंगदान करने वाले और अंग प्राप्त करने वाले का ब्लड ग्रुप एक नहीं होता। इस सर्जरी के लिए करीब एक महीने पहले तैयारियां शुरू करनी पड़ती हैं। एंटीबॉडीज का रिएक्शन न हो, इसके लिए सर्जरी से पहले जांचें की जाती हैं। इसके लिए मरीज को तीन चरण से गुजरना होता है। पहले राउंड में एंटीबॉडी तैयार करने वाले प्लाज्मा सेल का निर्माण रोका जा सके । दूसरा चरण बाकी बचे एंटीबॉडी को न्यूट्रिलाइज करने के लिए होता है।

तीसरे चरण में प्लाज्मा फिल्टर किया जाता है। डॉक्टर ने बताया कि ब्लड ग्रुप न मिलने के बावजूद किडनी ट्रांसप्लांट करने के लिए किडनी लेने वाले के शरीर में खून से कुछ विशेष एंटी-ब्लड ग्रुप एंटीबॉडीज को निकाले जाने की जरूरत होती है। मरीज के पिता का ब्लड ग्रुप अलग था, इसलिए पेशेंट के शरीर में एंटीबॉडीज बहुत ज्यादा बढ़ गए थे। इस कारण इन एंटीबॉडीज़ को निकालने के लिए इस्तेमाल होने वाली आम विधि, प्लाज्मा फे रेसिस के लिए अनेक सत्रों की जरूरत पड़ती हैं।

पिता ने दी युवक को किडनी

फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हॉस्पिटल ने जिस 18 वर्षीय झुंझुनूं के मरीज का ट्रांसप्लांट किया गया, यह युवक किडनी के पुराने रोग से पीड़ित था। जिस ब्लड ग्रुप का यह मरीज था, इस ग्रुप का परिवार में पेशेंट के समान ब्लड ग्रुप का कोई डोनर नहीं मिल रहा था। डायलिसिस के लिए उसे सप्ताह में दो बार अस्पताल जाना पड़ रहा था। डॉक्टर्स की एक मल्टीडिसिप्लिनरी टीम ने ब्लड ग्रुप न मिलने के बावजूद उसके पिता को किडनी डोनर बनाया और उसका किडनी ट्रांसप्लांट करने का निर्णय लिया।

जयपुर में पहली बार जटिल प्रक्रिया

नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. राधिका गोविल ने दावा किया कि जयपुर में पहली बार इतनी जटिल प्रक्रिया को अपनाकर सफलता से प्रत्यारोपण किया गया है। कॉलम थेरेपी को दो बार या तीन बार इस्तेमाल किया गया और हर बार इसमें 6 से 8 घंटे का समय लगा। अब उसे डायलिसिस कराने की जरूरत नहीं है, और वह सामान्य जीवन व्यतीत कर रहा है।

स्पेशलाइज्ड कॉलम थेरेपी नई विधि

डॉ. संदीप गुप्ता ने बताया कि स्पेशलाइज्ड कॉलम थेरेपी एक इनोवेटिव और नई विधि है। इस थेरेपी का उपयोग किए बगैर पेशेंट सामान्य जीवन व्यतीत नहीं कर पाता। इस प्रक्रिया में कम खर्च आया और प्लाज्मा फेरेसिस में होने वाले जोखिमों की संभावना भी कम रही।

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