पंकज सोनी। जयपुर- प्रदेश में गांवों की सरकार में भ्रष्टाचार जोर मार रहा है। पिछले तीन साल में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने पंचायत राज में 144 अधिकारी, कर्मचारी व निर्वाचित जन प्रतिनिधियों को रंग हाथों पकड़ा है। इतना ही नहीं, जनप्रतिनिधियों के खिलाफ राज्य सरकार के पास चालीस साल पहले तक की भी शिकायतें पेंडिंग चल रही हैं। इस पर सरकार ने आज तक कोई निर्णय नहीं किया है।
अभी राज्य सरकार के पास 780 शिकायतें पंचायतीराज जनप्रतिनिधियों के खिलाफ विचाराधीन चल रही हैं। श्रीगंगानगर जिले के प्रधान के खिलाफ 1983 में दर्ज की गई शिकायत आज तक भी विचाराधीन चल रही है। ऐसा नहीं है कि जनप्रतिनिधियों के खिलाफ सरकार कार्रवाई नहीं करती है। सरकार में कार्रवाई का पैमाना जनप्रतिनिधि के राजनीतिक रसूखात के हिसाब से तय किया जाता है।
एसीबी की तरफ से पिछले तीन साल में दर्ज किए गए मामलों में सबसे ज्यादा जनजाति इलाकों से जुड़े हुए हैं। भ्रष्टाचार के मामलों में बांसवाड़ा, बारां, उदयपुर जैसे जनजाति बाहुल्य जिले आगे हैं। तीन साल में बांसवाड़ा के 12 कार्मिकों को एसीबी ने गिरफ्तार किया। वहीं उदयपुर में 14 कार्मिकों और जनप्रतिनिधियों को भ्रष्टाचार के मामले में गिरफ्तार किया गया है।
पंचायती राज संस्थाओं में भ्रष्टाचार (Corruption) के मामले में दौसा ऐसा जिला है, जहां कोई मामला तीन साल में दर्ज नहीं हुआ। एसीबी रिकाॅर्ड के हिसाब से दौसा में इस दौरान ट्रेप की कार्रवाई नहीं की गई है।
पंचायत जनप्रतिनिधियों के खिलाफ दर्ज शिकायतें फाइलों में दफन हो जाती हैं। संबंधित जनप्रतिनिधि का कार्यकाल खत्म होने के सालों बाद भी शिकायतों की फाइल बाहर नहीं आती है।
सबसे ज्यादा विचाराधीन मामले जयपुर जिले में हैं। यहां 75 शिकायतें पेडिंग हैं। प्रधान, उपप्रधान, सरपंच और उपसरपंच के खिलाफ सबसे ज्यादा मामले हैं। वहीं 780 शिकायतों में से जिला प्रमुख व उपप्रमुख के खिलाफ 34, प्रधान व उपप्रधान के खिलाफ 161, जिप सदस्यों के खिलाफ 21, पंस सदस्यों के खिलाफ 70 और सरपंचों के खिलाफ 494 मामले विचाराधीन हैं। सबसे ज्यादा विचाराधीन मामले अजमेर, अलवर, भरतपुर, जोधपुर, सवाई माधोपुर में हैं। जयपुर में 3 साल में 41 शिकायतें दर्ज हुई हैं।
विचाराधीन प्रकरणों में सबसे कम मामले दौसा, धौलपुर, प्रतापगढ़, राजसमंद, बांसवाड़ा और बाड़मेर में हैं। प्रदेश के श्रीगंगानगर जिले में तो सबसे पुराने मामले सरकार के पास विचाराधीन हैं। यहां एक प्रकरण 1983 का, 1996 के दो और 1997 का एक मामला अभी भी सरकार के पास विचाराधीन है।
सामाजिक कार्यकर्ता किशोर कुमावत (Kishore Kumawat) का कहना है कि गांव में विकास कार्य पंचायत स्तर पर होता है। विकास कार्यों में सरपंच और जनप्रतिनिधि भ्रष्टाचार करते हैं। शिकायत पर अधिकारी कार्रवाई समय पर नहीं करते। कई मामलों में कोर्ट में मामला लंबा चला जाता है। सरपंच के खिलाफ शिकायत की जांच संभागीय आयुक्त करते है। इसमें सुनवाई समय पर नहीं होती।
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