सबसे मजबूत लकड़ी है महोगनी, 5 साल में एक बार बीज देता है यह वृक्ष

भारत में अधिकतर लोग कृषि से अपनी आजीविका चलाते हैं। इसलिए इसे कृषि प्रधान देश कहा जाता है। खेती का नाम आते ही गेहूं, मक्का,…

Mahogany is the strongest wood, this tree gives seeds once in five years

भारत में अधिकतर लोग कृषि से अपनी आजीविका चलाते हैं। इसलिए इसे कृषि प्रधान देश कहा जाता है। खेती का नाम आते ही गेहूं, मक्का, चावल, चने जैसी फसल पर गौर किया जाता है। जबकि भारत में अब वृक्षों की खेती को भी बढ़ावा मिल रहा है। इससे अच्छी कमाई के साथ-साथ देश की आर्थिक स्थिति भी मजबूत बनती है। वृक्षों की खेती से किसानों की आजीविका भी दौगुनी हो गई है। भारत में कई प्रकार के वृक्षों की खेती की जाती है।

इनमें महोगनी का वृक्ष व्यापारिक दृष्टि से बेहद खास है। महोगनी की लकड़ी से बने फर्नीचर सबसे मजबूत माने जाते हैं। बाकी लकड़ियों की तुलना में यह सबसे महंगी लकड़ी भी है। हालांकि कई लोग मानते हैं कि सागवान की लकड़ी से बने सामान अधिक मजबूत होते हैं, जबकि महोगनी इससे अधिक मजबूत और महंगी लकड़ी है। आखिर ऐसा क्यों, इसी के बारे में जानेंगे आज के कॉर्नर में…      

महोगनी के पेड़ का इतिहास 

इसका इतिहास वेस्ट इंडीज के द्वीपों से जुड़ा हुआ है। फ्रांसीसी उपनिवेशवादियों ने इसके लिए अकाजौ शब्द का इस्तेमाल किया। जबकि स्पेनिश क्षेत्रों में इसे काओबा कहा गया। वर्ष 1671 में महोगनी शब्द का पहली बार इस्तेमाल किया गया। वर्ष 1759 में कार्ल लिनिअस ने सेडरेला महगोनी के रूप में इसे वर्गीकृत किया। इसके एक वर्ष बाद निकोलस जोसेफ जैक्विन ने इसका नाम स्वेटेनिया महगोनी रखा।

वनस्पति विज्ञानियों और प्रकृतिवादियों ने इस पेड़ को देवदार का ही एक प्रकार माना था। वर्ष 1836 में जर्मन वनस्पतिशास्त्री जोसेफ गेरहार्ड ज़ुकारिनी ने इसकी दूसरी प्रजाति की खोज की, जिसका नाम स्वेतेनिया ह्यूमिलिस रखा। इसके बाद वर्ष 1886 में सर जॉर्ज किंग ने इसकी तीसरी प्रजाति की खोज की, जिसका नाम स्वेटेनिया मैक्रोफिला रखा गया। किंग ने इसकी खोज भारत के कलकत्ता में बोटेनिक गार्डन में लगाए गए होंडुरास महोगनी के नमूनों का अध्ययन करने के बाद की।  

अमेरिका का स्थानीय वृक्ष 

महोगनी लाल-भूरे रंग का दानेदार वृक्ष है। यह एक प्रकार की इमारती लकड़ी है। यह अमेरिका का स्थानीय वृक्ष है, जो कि उष्णकटिबंधीय चिनबेरी वंश का पेड़ है। इसका रंग और प्रकृति टिकाऊ है। यही कारण है कि विभिन्न प्रकार के सामानों के लिए इसका उपयोग किया जाता है। इसका मूल स्थान अमेरिका है। यहां से एशिया और ओशिनिया में महोगनी की लकड़ी का आयात किया गया है।

बात करें इसके इतिहास की तो 16वीं सदी में इसका व्यापार शुरू हुआ था। लेकिन व्यापक रूप से इसका व्यापार 17वीं और 18वीं सदी में विकसित हुआ। विश्व के कई देशों में इसे आक्रामक प्रजाति के रूप में जाना जाता है। इसकी तीन प्रजातियां है- स्वीएटेनिया मैक्रोफिला, स्वीएटेनिया महोगनी, और स्वेटेनिया ह्यूमिलिस। 

सबसे बड़ा निर्यातक 

महोगनी का सबसे प्रमुख आयातक देश अमेरिका है, जबकि पेरू सबसे बड़ा निर्यातक देश है। यह डोमिनिकन गणराज्य और बेलीज का राष्ट्रीय वृक्ष है। महोगनी के पेड़ से कई प्रकार के फर्नीचर बनाए जाते हैं। कई देशों में इससे इमारते भी बनाई जाती है। इसे पैनलिंग, फर्नीचर, नाव, संगीत वाद्ययंत्र और कई  प्रकार की वस्तुएं बनाई जाती है। यह एक मूल्यवान लकड़ी है। प्रजाति के रूप में इसे 19वीं सदी से जाना जाने लगा।

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