उत्तरप्रदेश के काशी में बसा सारनाथ एक बौद्ध तीर्थस्थल है। यह वाराणसी से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस स्थान पर ज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश दिया था। जिसे “धर्म चक्र प्रवर्तन” का नाम दिया गया। यहीं से बौद्ध मत के प्रचार-प्रसार की शुरूआत मानी जाती है। यह भारत के बौद्ध धर्म के चार प्रमुख तीर्थों में से एक है। इसके अलावा तीन तीर्थस्थल लुम्बिनी, बोधगया और कुशीनगर है। जैन ग्रन्थों में सारनाथ (Sarnath) को ‘सिंहपुर’ कहा गया है। यहां कई स्तूप व दर्शनीय स्थल बने हुए है। भारत का राजकीय प्रतीक अशोक चिह्न भी सारनाथ के संग्रहालय में सुरक्षित रखा हुआ है।
अशोक चिह्न भारत का राजकीय प्रतीक है जिसमें चार शेर बने हुए हैं जो पूर्व-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण चारों दिशाओं की ओर मुंह किए हुए खड़े हैं। इसके नीचे एक गोल आधार है जो उल्टे लटके कमल के रूप में है। इस आधार पर एक हाथी, एक घोड़ा, एक सांड़ और एक सिंह बने हुए हैं। यह मुद्राए दौड़ते हुए रूप में बनी हुई है। चिह्न पर बने हर पशु के बीच में एक धर्म चक्र बना हुआ है। इस चिह्न को सारनाथ में मिली अशोक लाट से लिया गया है। इस चिह्न को भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में 26 जनवरी 1950 को अपनाया गया था।
भारत का राष्ट्रीय चिह्न अशोक चिह्न यहां बने अशोक स्तंभ के मुकुट पर बनी अनुकृति का प्रतीक है। इस प्रतीक चिह्न के नीचे देवनागरी लिपि में ‘सत्यमेव जयते’ लिखा हुआ है। यह शब्द मुंडकोपनिषद से लिया गया हैं, जिसका अर्थ है केवल ‘सच्चाई की विजय’ होती है।
सारनाथ (Sarnath) में कई दर्शनीय स्थल हैं जिनमें अशोक का चतुर्मुख सिंहस्तम्भ, भगवान बुद्ध का मन्दिर, धामेख स्तूप, चौखन्डी स्तूप, राजकीय संग्राहलय, जैन मन्दिर, चीनी मन्दिर, मूलंगधकुटी और नवीन विहार दर्शनीय स्थल प्रमुख हैं। प्राचीन काल में यहां घना वन था जहां हिरण घुमा करते थे। उस समय इस स्थान को ‘ऋषिपत्तन’ और ‘मृगदाय’ कहा जाता था। सम्राट अशोक के समय में सारनाथ में कईं निर्माण कार्य हुए। यहा ‘धमेक स्तूप’ बना हुआ है जो सारनाथ की प्राचीनता का बोध कराता है। सारनाथ पर कईं विदेशी आक्रमण हिए, जिसके कारण बाद में इसका महत्व कम हो गया था। इसका नाम सारंगनाथ महादेव मंदिर के नाम पर सारनाथ रखा गया।
सारनाथ (Sarnath) के आस-पास के क्षेत्र की खुदाई से कईं गुप्तकालीन कलाकृतियां तथा बुद्ध प्रतिमाएं प्राप्त हुई थी। यह वर्तमान एक संग्रहालय में रखी हुई हैं। यहां एक प्रार्चीन शिव मंदिर तथा एक जैन मंदिर बना हुआ हैं। यह जैन मंदिर वर्ष 1824 में बनाया गया था। इस मंदिर में श्रियांशदेव की प्रतिमा है। इसके अलावा यहां चौखंडी स्तूप, धर्मराजिका स्तूप, मूलगंध कुटी विहार, अशोक स्तंभ, धमेख स्तूप बने हुए है।