‘शव के साथ सेक्स रेप नहीं’, हाईकोर्ट की टिप्पणी से छिड़ा विवाद, जानें क्या कहती है IPC

कर्नाटक हाईकोर्ट ने हत्या और रेप मामले में दोषी को लेकर टिप्पणी की थी शव के साथ सेक्स करना रेप नहीं होता, हम इसे रेप…

'शव के साथ सेक्स रेप नहीं', हाईकोर्ट की टिप्पणी से छिड़ा विवाद, जानें क्या कहती है IPC

कर्नाटक हाईकोर्ट ने हत्या और रेप मामले में दोषी को लेकर टिप्पणी की थी शव के साथ सेक्स करना रेप नहीं होता, हम इसे रेप के दायरे में नहीं रख सकते। इस टिप्पणी ने देश में एक नई बहस को जन्म दे दिया है कि क्या शव के साथ इस हद तक गिरी हुई हरकत करना रेप क्यों नहीं हो सकता और अगर रेप नहीं तो इसे फिर क्या माना जाए? हाईकोर्ट ने ये टिप्पणी क्यों और किस मामले में की और IPC की किस धारा के तहत की सबसे पहले वो जानते हैं।

8 साल पुराने मामले की सुनवाई में दिया गया फैसला

दरअसल कल कर्नाटक हाईकोर्ट 8 साल पुराने 2015 के मामले की सुनवाई कर रही थी। ये केस कर्नाटक के
तुकमुर जिले के एक गांव का है। यहां पर गांव के ही एक युवक रंगराज ने एक 21 साल की युवती की हत्या कर दी। जब लड़की की मौत हो गई तो आरोपी ने उस युवती के शव के साथ सेक्स किया।

ये मामला साल 2017 में तुकमुर की जिला और सेशन कोर्ट में गया, कोर्ट ने आरोपी को हत्या और रेप का दोषी करार दिया। कोर्ट ने आरोपी को हत्या के मामले में उम्रकैद और 50 हजार रुपए का जुर्माना लगाया था और रेप केस में 10 साल की सजा और 25 हजार का जुर्माना लगाया। लोअर कोर्ट के इस फैसले को आरोपी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी कि उस पर रेप का मामला बनता ही नहीं।

शव के साथ रेप कानून की किसी धारा में नहीं आता

कल जब इस मामले की कर्नाटक हाईकोर्ट में सुनवाई हुई तो डिविजन बेंच ने कहा कि आरोपी ने जो हरकत शव के साथ की हो वो रेप की कैटेगरी में नहीं आता। क्योंकि IPC की धारा 376 में इसका जिक्र नहीं है। अगर हम अप्राकृतिक सेक्स के बारे में बात करते हैं तो ये भी इस श्रेणी में नहीं आता।

इस टिप्पणी के बाद बेंच ने ये भी कहा कि हमने जो फैसला दिया है वो कानून के तहत ही दिया है, लेकिन इस केस को लेकर हम कहेंगे कि अब कानून में बदलाव की जरूरत है। किसी भी शव के साथ इस तरह का व्य़वहार को रेप की श्रेणी में लाना चाहिए। इसके लिए कानून में बदलाव करना चाहिए। समय के साथ परिवर्तन वक्त की मांग होती है।

नेक्रोफीलिया को कानून के दायरे में लाने की जरूरत

कोर्ट ने ये भी कहा कि शव के साथ रेप करना नेक्रोफीलिया होता है और अब इसे भी कानून के दायरे में लाने की जरूरत है। अगर कोई भी व्यक्ति प्रकृति के बनाए गए नियमों के खिलाफ इस तरह का काम करता है तो इसे रेप जैसे गंभीर अपराध की श्रेणी में लाना चाहिए। कोर्ट ने ये कहते हुए आरोपी रेप के आरोप में बरी कर दिया।

क्या कहती है IPC की धारा 376

अब बात ये करते हैं कि कोर्ट ने किन धाराओं के चलते ये फैसला सुनाया है और क्या शव के साथ रेप करने के अपराध में क्या कोई सजा भारतीय दंड संहिता में लिखी ही नहीं गई है। बलात्कार के अपराध को IPC की धारा 376 में वर्णित किया गया है। इसमें लिखा गया है कि किसी महिला के साथ अगर असकी मर्जी के खिलाफ, नशे में, उसके होश में ना होने, जबरन डरा, धमका कर या मानसिक प्रताड़ना देकर संबंध बनाया जाता है तो ये अपराध की श्रेणी में आएगा, इसे हम रेप कहेंगे और इसमें कम से कम 7 साल की सजा होती है और विशेष मामलो में 10 साल की सजा होती है।

धारा 377 में भी जिक्र नहीं

वहीं अप्राकृतिक रेप को IPC की धारा 377 में वर्णित किया गया है जिसमें लिखा है कि अगर कोई व्यक्ति प्रकृति के बनाए नियन के खिलाफ जाकर य़ौन क्रियाएं करता है, वो किसी पुरूष से या स्त्री से जानवर से शारीरिक संबंध बनाता है तो यह अप्राकृतिक सेक्स होगा, और इसमें आरोपी को आजीवन कारावास या 10 साल की सजा और जुर्माना देने की सजा दी जाती है।

कानून में होगा बदलाव

शव के साथ रेप करने के अपराध को इन श्रेणी में रखा ही नहीं गया है। जिसके बाद यह बहस छिड़ गई है कि अब कानून में इस अपराध को शामिल करने के लिए बदलाव करने की जरूरत आ गई है। ऐसे तो अपराधी इस तरह का घिनौना अपराध कर जाएगा और इसे सजा ना देकर समाज के एक बेहद धारणा उपजेगी जो समाज के लिए एक गंभीर खतरा है।

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