सुमन ने खुद सीखी फूड प्रोसेसिंग, अब हर महीने कमा रही हैं हजारों, दूसरों को भी दे रही हैं ट्रेनिंग

बीए तक पढ़ चुकी सुमन का आम महिला से सफल बिजनेसवुमन तक पहुंचने का सफर आसान नहीं रहा।

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सबसे ज्यादा जरूरी है महिलाओं का आत्मनिर्भर होना। जरूरी नहीं कि आपको रूपए-पैसों की जरूरत हो तभी आप काम करें, ये वो चीज है जिसकी अहमियत हर महिला को समझनी चाहिए। आपका काम आपकी पहचान है, और इस पहचान के लिए आपको अपने पैरों पर खड़ा होना ही चाहिए। यह कहना हैं कोटा की रहने वाली आत्मनिर्भर बिजनेस वुमन सुमन शर्मा का। वे ऋषि फ्रेश फूड्स नामक अपना आउटलेट चलाती हैं। उनके पति अखिल शर्मा खेती करते हैं और उनका फोटोग्राफी का भी काम है, जबकि वे खुद फूड प्रोसेसिंग का काम करती हैं।

बीए तक पढ़ चुकी सुमन का आम महिला से सफल बिजनेसवुमन तक पहुंचने का सफर आसान नहीं रहा। वे कहती हैं, आज मुझे कई सम्मान और पुरस्कार मिले हैं लेकिन इन्हें पाने तक का मेरा सफर काफी मुश्किलों भरा रहा है। मैं शुरुआत से ही आत्मनिर्भर होना चाहती थी, ताकि अपनी जरूरतों के लिए किसी पर भी निर्भर न होना पड़े। आज मैं इस कंडीशन में हूं कि अपने परिवार के साथ दूसरों की भी मदद कर पाती हूं। शुरू में काम के सिलसिले में बाहर जाना होता था तो लोग बातें बनाते थे, लेकिन पति ने काफी सपोर्ट किया।

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एक्जिबिशन में जाने से बढ़ा उत्साह

सुमन बताती हैं, के वीके से जुड़ने के बाद मुझे जानकारी हुई कि महिला समूहों को कृषि मेलों या आयोजनों में मुफ्त में स्टॉल लगाने का मौका मिलता है। मैंने गांव की 10 महिलाओं के साथ मिलकर ऋषि स्वयं सहायता समूह बनाया। इस समूह को उन्होंने नगर निगम के साथ रजिस्टर किया, जिससे उन्हें कोटा में लगने वाले दशहरा मेला और दूसरे कृषि मेलों में अपनी स्टॉल लगाने का मौका मिलने लगा। वहां हमारे सारे उत्पाद बिकने लगे।

वह आगे कहती हैं कि हमने अपना बड़ा संगठन शुरू किया और 100 महिलाओं को फूड प्रोसेसिंग सिखाई। वे अलग-अलग स्वयं सहयता समूह बनाकर उन्हें काम देने लगी। बाद में आंवले के अलावा हमने सोया के प्रोडक्ट्स भी बनाने शुरू किए। कृषि मेलों में मुझे बहुत से रिटेलर जुड़ गए थे और उनसे बल्क ऑर्डर मुझे मिलने लगे। इसलिए मैंने अपने बचत के पैसों से यह यूनिट सेटअप की।

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पुरस्कारों ने बढ़ाया हौसला

सुमन बताती हैं, मैं और मेरे पति दोनों काम करते हैं और अपने परिवार को अच्छी जिंदगी दे पाने में सक्षम हुए हैं। मुझे लगता है कि अब हम अपने बच्चों के सपनों को पूरा कर सकते हैं। वे कहती हैं, अगर हम सिर्फ किसानी पर निर्भर रहते तो इतना आगे न बढ़ पाते। मुझे खुशी है कि मैं अपने पति के साथ मिलकर आर्थिक जिम्मेदारियों का बोझ उठा पाने के काबिल हूं।

दूसरों का भी बनी सहारा

सुमन बताती हैं, 2001 में शादी हुई, ससुराल में संयुक्त परिवार था और सब खेती पर निर्भर थे। बड़ा परिवार होने से गुजारा ही हो पाता था, इसलिए मैंने काम करने की सोची। शुरुआत में ब्यूटी पार्लर का काम किया फिर सिलाईकढ़ाई का काम भी आता था, वो भी किया। पर इससे ज्यादा कमाई नहीं हो पाती थी। एक बार पति को के वीके कोटा में काम मिला और वहां उन्हें पता चला कि वहां महिलाओं को ट्रेनिंग दी जाती है अलग-अलग कामों की।

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