वॉशिंगटन। मिट्टी की परत के नीचे जमी बर्फ और मिट्टी को पर्माफ्रॉस्ट कहते हैं। आर्कटिक का गर्म तापमान क्षेत्र में मौजूद पर्माफ्रॉस्ट को पिघला रहा है। इनके पिघलने से हजारों वर्षों से सोए हुए जानलेवा वायरस के जागने का खतरा है। ये इंसान और जानवर दोनों के लिए ही खतरा पैदा कर सकते हैं। वैज्ञानिकों ने अब एक 48 हजार 500 साल पुराना वायरस खोजा है।
पर्माफ्रॉस्ट किसी टाइम कैप्सूल की तरह होते हैं, जिसमें हजारों साल पुराने जीवों के शव और वायरस बचे हुए रह सकते हैं। वैज्ञानिक मान कर चल रहे हैं कि इनमें जमे हुए वायरस फिर से जिंदा (zombie virus) हो जाते हैं तो सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए जोखिम पैदा हो जाएगा।
इंसान की अमीबा कोशिकाओं को करता है इफेक्ट
पिछली 18 फरवरी को जर्नल वायरस में छपे अपने लेटेस्ट शोध के अनुसार क्लेवेरी और उनकी टीम ने कई वायरस को फिर जिंदा किया, जो अमीबा कोशिकाओंको इफेक्ट कर सकते हैं। पांच (zombie virus) नए वायरस को उन्होंने खोजा है, जिनमें से सबसे पुराना 48,500 साल पहले का है, जो मिट्टी के नीचे मिला। मिट्टी की रेडियो कार्बन डेटिंग के आधार पर इनकी उम्र का पता चला। वहीं सबसे कम उम्र का वायरस 27,000 साल पुराना है, जो एक वुली मैमथ के अवशेषों के कोट में पाए गए थे।
बर्फ में सोए होते हैं ये वायरस
पर्माफ्रॉस्ट में उत्तरी गोलार्ध का पांचवां हिस्सा शामिल है। इस बर्फ में जमे वायरस का पता लगाने के लिए फ्रांस के ऐक्स-मार्सिले यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन में जीनोमिक्स के प्रोफेसर जीन (zombie virus) मिशेल क्लेवेरी ने साइबेरियाई पर्माफ्रॉस्ट के लिए पृथ्वी के नमूनों का सैंपल लिया है। इस तरह बर्फ में सोए हुए वायरस को वह जॉम्बी वायरस कहते हैं।
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