Rajasthan : मंकीपॉक्स धीरे-धीरे प्रदेश में अपने पांव पसार रहा है। अब प्रदेश में इसका पहला केस भी मिल गया है। अजमेर के किशनगढ़ में मंकीपॉक्स का संदिग्ध मिला है। जानकारी मिलते ही संदिग्ध को किशनगढ़ से RUHS अस्पताल रेफर कर दिया गया है। मरीज का सैंपल लेकर उसे जयपुर के SMS अस्पताल में भेज दिया गया है। RUHS अस्पताल के अधीक्षक डॉक्टर अजीत सिंह का कहना है कि मरीज के शरीर पर लाल रंग के चकत्ते मिले हैं। फिलहाल मरीज को आइसोलेशन वार्ड में रखा गया है। अगर जरूरत पड़ी तो मरीज का सैंपल पुणे स्थित वायरोलॉजी में भी भेजा जा सकता है।
चिकित्सा विभाग ने जारी की गाइडलाइन
प्रदेश में मंकीपॉक्स ( Monkey Pox ) का संदिग्ध मिलने के बाद शासन-प्रशासन अलर्ट हो गया है। जयपुर ( Jaipur ) के SMS अस्पताल और RUHS अस्पताल में आइसोलेशन वार्ड बनाए गए हैं। जिसमें मंकीपॉक्स के संदिग्ध मरीजों को रखआ जाएगा। वहीं चिकित्सा विभाग ने विस्तृत गाइडलाइन जारी कर दी हैं। जिसमें सभी सीएचसी, पीएचसी, जिला अस्पतालों के डॉक्टर्स को निर्देशित किया गया है कि मंकीपॉक्स का कोई भी संदिग्ध मिलता है तो उसे तुरंत रेफर किया जाए।
देश में अब तक मिले 4 संदिग्ध
पूरे देश में मंकीपॉक्स ( Monkey Pox ) के 4 मामलों की पुष्टि हुई है। इसके अलावा अब तक 4 संदिग्ध भी मिले हैं। कल ही केरल, दिल्ली और झारखंड से मंकीपॉक्स के 3 संदिग्ध मिले, अब राजस्थान में एक संदिग्ध मिलने से इनकी संख्या 4 हो गई है।
ये हैं मंकीपॉक्स के लक्षण
मंकीपॉक्स से प्रभावित लोगों के शुरुआती लक्षणों में तेज बुखार, सिर दर्द, शरीर में सूजन, कमर दर्द और मांशपेशियों में दर्द शामिल है। बुखार होने पर त्वचा पर रैशेज हो जाते हैं।इसकी शुरुआत चेहरे से होती है, फिर यह धीरे धीरे पूरे शरीर में फैल जाती है। इसके अलावा हथेलियों और पैरों के तलवों में बहुत खुजली होती है। यहां तक कि खुजली से दर्द भी हो जाता है।
इसके बाद इसमें पपड़ी तक पड़ जाती है। और सूख कर गिर जाती है। जिसके बाद घाव के गहरे निशान भी पड़ जाते हैं। आम तौर पर यह संक्रमण 15 से 21 तक रहने के बाद अपने आप ठीक हो जाता है। लेकिन गंभीर हालत होने पर इसके उचित इलाज की जरूरत भी पड़ती है।
संक्रमित व्यक्ति से आंख, नाक, मुंह के रास्ते फैलता है वायरस
यह संक्रमण एक दूसरे से फैलता भी है। किसी संक्रमित व्यक्ति से यह इसके संपर्क में रहे लोगों में तेजी से फैलता है। इसका वायरस इंसान की त्वचा पर आंख, नाक या मुंह के रास्ते से जा सकता है। इसलिए अगर कोई व्यक्ति इससे संक्रमित है, तो उससे दूर रहकर खुद को इससे बचाया जा सकता है। दशकों तक एक ही समुदाय को प्रभावित करने वाला यह वायरस चेचक से काफी हद तक मिलता जुलता है। इसके टीके और उपचार भी उपलब्ध हैं। चेचक का टीका इस बीमारी पर काफी हद तक काम करता है।